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अनुप्रेक्षा और स्वास्थ्य १५१
में चिन्तन करें, किन्तु चिन्ता न करें । भविष्य की चिन्ता भी बुढ़ापा जल्दी लाएगी । पूज्य गुरुदेव का प्रसिद्ध सूत्र है—'चिन्ता नहीं, चिन्तन करो, व्यथा नहीं, व्यवस्था करो ।' चिन्ता मत करो, चिन्तन करो-आगे क्या करना चाहिए | यदि उसकी चिन्ता में लग गए तो दस वर्ष बाद आने वाला बुढ़ापा पहले ही आ जाएगा । चिन्ता और व्यथा नहीं, चिन्तन और व्यवस्था से बुढ़ापे की समस्या को समाहित किया जा सकता है । व्यथा और चिन्ता से कोई लाभ नहीं मिल सकता । आश्वासन मिलता है चिन्तन और व्यवस्था से । यदि सम्यक् चिन्तन और व्यवस्था हो तो बुढ़ापा भी सुखद हो सकता है ।
जीवन-शैली बदले
आचारांग सूत्र का बहुत सुन्दर प्रसंग है—अभी वय अतिक्रान्त हो रहा है, अवस्था आ रही है । इसे देखो ! अपनी जीवन शैली को बदलो, आहार का विवेक करो । महावीर की वाणी में स्वास्थ्य के सन्दर्भ में जो बात एक शिशु के लिए है, वही बात एक वृद्ध आदमी के लिए है । आहार-विवेक का पहला सूत्र है— वृद्ध आदमी क्या खाए ? जैसे-जैसे व्यक्ति वृद्ध होता है, प्रत्येक अवयव की शक्ति का ह्रास होता चला जाता है । यदि वृद्ध व्यक्ति गरिष्ठ भोजन करता है तो उसे स्वास्थ्य की कल्पना भी नहीं करनी चाहिए। जो गरिष्ठ भोजन करेगा, वह स्वस्थ कैसे रहेगा? जो व्यक्ति हल्का-फुल्का भी नहीं पचा सकता, वह गरिष्ठ तली-भुनी चीजें कैसे पचा पाएगा ? यदि वृद्ध को स्वस्थ रहना है तो उसे गरिष्ठ भोजन से बचना होगा । पचास वर्ष के बाद भोजन को बदल देना चाहिए । वस्तुतः भोजन का परिवर्तन इससे भी पहले चालीस वर्ष की अवस्था में हो जाना चाहिए ।
ह्रास इन्द्रिय-पाटव का
कहा गया- चालीस वर्ष के बाद इन्द्रियों की शक्ति क्षीण होनी शुरू हो जाती है । प्राचीन ग्रन्थों में हमारी शक्ति के क्षीण होने का जो क्रम बतलाया गया है, वह मेडिकल साइंस में भी सम्मत है । मेडिकल साइंस के अनुसार चालीस वर्ष के पश्चात् आंख की ज्योति कम होनी शुरू हो जाती है । चालीस वर्ष तक हमारी पूर्ण विकास की अवस्था रहती है । उसके पश्चात् पुनः ढलान
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