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________________ १५० महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र बनाने की बात भी सोच रहा है। इसके लिए अनेक विधियों का विकास भी किया है। अनेक व्यक्तियों ने अपने आपको अमर बनाने के लिए आवेदन कर दिया है | भविष्य के लिए योजनाएं बना ली हैं । निश्चित अर्थराशि को अग्रिम रूप से फिक्सडिपोजिट कर दिया है। व्यक्ति जिस दिन चाहेगा उस दिन जीवित शरीर को प्रयोगशाला में सुरक्षित रख दिया जाएगा। उसका वह शरीर शीतीकृत 'ममी' के रूप में निर्धारित अवधि तक पड़ा रहेगा । उसे पुनः कब जिलाना है, यह समय भी निश्चित रहेगा | निश्चित समय पर शीतीकृत और सुरक्षित शरीर को पुनः जिला दिया जाएगा । व्यक्ति का यह चिन्तन केवल कल्पना में ही नहीं है , क्रियान्वित हो रहा है । इसकी प्रक्रिया लगभग तैयार हो गई है । अनेक लोगों ने इस सम्मोहक प्रस्ताव को स्वीकार कर उपयुक्त राशि भी चुका दी है। मनुष्य को अमर बनाने का यह अभिक्रम कितना सफल होगा, कहा नहीं जा सकता, इसकी भविष्यवाणी भी आज नहीं की जा सकती, किन्तु वर्तमान वैज्ञानिकों के ये प्रयत्न मनुष्य में नई आशा को अवश्य जन्म दे रहे हैं। बुढ़ापे को आगे सरकाने के भी काफी प्रयत्न किए जा रहे हैं । ऐसे उपाय खोजे जा रहे हैं, जिससे बुढ़ापे को रोक सकें, बुढ़ापा आए ही नहीं, आदमी सदा युवा ही बना रहे । संभवतः च्यवन ऋषि ने इसीलिए च्यवनप्राश का आविष्कार किया था कि आदमी बूढ़ा बने ही नहीं। किन्तु आज तो च्यवनप्राश खाने वाले भी बूढ़े बन रहे हैं । वैज्ञानिक विटामिन्स के सेवन पर बल दे रहे हैं । कहा जा रहा है कि विटामिन 'ए' खाओ, विटामिन 'बी' खाओ, मेथी खाओ, जिससे ताकत मिल जाए, बुढ़ापा रुक जाए । ऐसे अनेक प्रयत्न अपनाए जा रहे हैं, फिर भी मनुष्य बूढ़ा बन रहा है । बुढ़ापे से मत डरो जीवन में छह-सात दशक बाद बुढ़ापा दस्तक देता है । बुढ़ापे में स्वस्थ कैसे रहें ? यह प्रश्न प्रत्येक वृद्ध आदमी के मानस में उभरता रहता है । महावीर कहते हैं—मा भाइयव्वं बुढ़ापे से मत डरो, मृत्यु से मत डरो । यदि बुढ़ापे से डरोगे तो मन में यह भय हो जाएगा कि मैं बूढ़ा हो जाऊंगा तो क्या होगा ? लोग भविष्य-निधि की चिन्ता अधिक करते हैं । भविष्य के संदर्भ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003146
Book TitleMahavira ka Swasthyashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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