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अनुप्रेक्षा और स्वास्थ्य १४९
भी बाईपास सर्जरी कराई गई । इसमें अनेक कारण हो सकते हैं किन्तु मातापिता की असावधानी शायद सबसे बड़ा कारण बनती है। छोटे-छोटे बच्चे टी. वी. के निकट जाकर बैठ जाते हैं । घण्टों तक टी. वी. देखते रहते हैं। आंखें कमजोर हो जाती हैं । दो-तीन वर्ष की अवस्था में ही चश्मा शरीर का अवयव जैसा बन जाता है। यदि माता-पिता जागरूक रहें तो उसकी यह आदत नियंत्रित हो सकती है । छोटा बच्चा मीठा खाने का शौकीन होता है। वह बहुत खाता है, बहुत चीजें खाता है। पानपराग और चुटकी जैसी हानिकारक वस्तुएं भी माता-पिता बच्चों को खिला देते हैं । ऐसी चीजें मुँह में ज्यादा रहेंगी तो दांत खराब होंगे, दांतों में कीड़े पड़ जाएंगे आंतें खराब होंगी । पाचनतंत्र की विकृति से अनेक बीमारियों को निमंत्रण मिल जाएगा। यह भी एक जटिल प्रश्न है— बच्चा किसी चीज को देख लेता है तो वह मांगे बिना नहीं रहता, खाए बिना नहीं रहता । उसमें यह विवेक नहीं है कि क्या खाना चाहिए ? कितनी बार खाना चाहिए ? माता-पिता का दायित्व है कि वे शिशु में यह विवेक जगाएं । उसे प्यार और मृदुता से समझाएं । ऐसा न करें कि बच्चा रो रहा है, मचल रहा है तो उसे वह चीज देकर चुप अथवा शान्त करें, जो उसके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । यह सोचें कि शिशु के लिए हितकर क्या है ? जो हितकर है, वही दें । हितकर आहार ही शिशु-स्वास्थ्य को सुरक्षित बनाए रख सकता है । इस दृष्टि से निरंतर सजग रहकर ही शिशु के स्वास्थ्य को बनाए रखा जा सकता है ।
प्रश्न वृद्ध स्वास्थ्य का
एक प्रश्न है वृद्ध स्वास्थ्य का । वृद्धावस्था कब प्रारंभ होती है ? सत्तर वर्ष की अवस्था तक आदमी बूढ़ा होता नहीं है । जो इससे पहले ही अपने आपको बूढ़ा मान लेता है, वह मान्यता-जनित दोष के कारण असमय में ही बूढ़ा बन जाता है । व्यक्ति सत्तर वर्ष तक अपने आपको बूढ़ा माने ही नहीं। सत्तर वर्ष के बाद भी जागरूक रहे तो बुढ़ापा आगे खिसक जाएगा । वर्तमान विज्ञान इस दिशा में सक्रिय है कि व्यक्ति बूढ़ा न बने । वैज्ञानिक यह अनुसंधान कर रहे हैं कि बुढ़ापे को कैसे टाला जाए ? वैज्ञानिकों के सामने प्रश्न यह भी है कि आदमी सदा युवा बना रहे । इतना ही नहीं, वह मनुष्य के अमर
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