SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ . महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र की ओर गति होती है। यह क्रम धीरे-धीरे आगे बढ़ता है । पांचों इन्द्रियों की शक्तियों का ह्रास होता चला जाता है और एक दिन बुढ़ापा मनुष्य को घेर लेता है। यह संकेत बहुत महत्वपूर्ण है— चालीस वर्ष की अवस्था में तो व्यक्ति को निश्चित सावधान हो जाना चाहिए । व्यक्ति प्रारंभ से ही सावधान रहे, यह बहुत अच्छी बात है, किन्तु चालीस वर्ष का हो जाए और सावधान न रहे तो बुढ़ापा कभी सुखद नहीं हो सकता । एक अवस्था के पश्चात् यह सावधानी बहुत काम देती है कि क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए । स्वस्थ जीवन का सबसे बड़ा सूत्र है— इन्द्रियों की शक्ति को सुरक्षित बनाए रखना, इन्द्रिय-पाटव को बनाए रखना । यदि कान की शक्ति कम हो गई तो एक समस्या पैदा हो गई । यदि आंख की ज्योति क्षीण हो गई तो एक समस्या पैदा हो गई । सुनना और देखना बंद हो जाए तो जीवन निरर्थक जैसा प्रतीत होता है । रात्रि-भोजन का वर्जन वृद्ध अवस्था में पाचनशक्ति भी कमजोर हो जाती है। महावीर ने कहारात्रि-भोजन मत करो । कम से कम वृद्ध व्यक्ति तो रात को खाए ही नहीं। पहले रात्रि-भोजन के निषेध को धर्म का सिद्धान्त माना जाता था किन्तु आज यह स्वास्थ्य का सिद्धान्त बन गया है । आजकल डाक्टर भी कहते हैं- रात में मत खाओ, रात में भोजन का पाचन सम्यक नहीं होता । आयुर्वेद का सिद्धान्त है- भोजन के बाद जब तक खाया हुआ अन्न पाचनतंत्र में न चला जाए तब तक नहीं सोना चाहिए । अन्यथा पाचन में विकार पैदा हो जाएगा। जो पाचनतंत्र की गड़बड़ियां हैं, एसीडीटी की समस्या है, उसका एक प्रमुख कारण यही है कि व्यक्ति भोजन करते ही लेट जाता है | रात को ग्यारहबारह बजे भोजन किया और लेट गया। रात्रि में ऐसे ही पाचन कम होता है और फिर खाते ही लेट जाए तो गड़बड़ी क्यों नहीं होगी ? एक युवा इस स्थिति को कभी झेल भी लेता है, किन्तु एक वृद्ध इस प्रकार की स्थिति में बीमारी को निमंत्रण दे देता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003146
Book TitleMahavira ka Swasthyashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy