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१३८ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
होता है, पहले दृष्टिकोण का निर्माण होता है । दृष्टिकोण का निर्माण कैसे करें ? इसके लिए जो सबसे पहला उपाय है, वह यह है अनेकान्त का जीवन में प्रयोग करें । भगवान महावीर ने अनेकान्त का दृष्टिकोण दिया, जिससे भावात्मक संतुलन, मस्तिष्कीय संतुलन और शारीरिक क्रियाओं का संतुलन बना रहे । जहां एकान्तवाद है, वहां आग्रह है । आग्रह में स्थिति उलझती है । आग्रह बहुत तनाव पैदा करता है । तनाव हृदयरोग की उत्पत्ति में बहुत जिम्मेवार बनता है | आग्रह केवल बड़ी बातों का ही नहीं होता, छोटी-छोटी बातें भी आग्रह का कारण बन जाती हैं । दो भाई हैं । एक भाई ने कहा-मैं इस मकान को खरीदूंगा । दूसरे ने कहा—नहीं, मैं इसे नहीं लेने दूंगा । मकान खरीदा गया या नहीं गया, किन्तु दोनों में एक तनाव पैदा हो गया । क्रिया
और प्रतिक्रिया का चक्र शुरू हो गया। एक भाई सदा यह ध्यान रखने लगाकहीं यह मकान खरीद न ले । दूसरा भाई इस बात के प्रति सदा जागरूक रहने लगा- मकान खरीदने में कोई बाधक न बन जाए ।
यह आग्रहजनित तनाव का एक निदर्शन है । एकान्तवाद से आग्रह और आग्रह से विग्रह की स्थिति बन जाती है । जहां आग्रह और विग्रह है, वहां तनाव अवश्यंभावी है | अनेकान्त है आग्रह का विसर्जन, दूसरे के दृष्टिकोण को समझने का प्रयत्न करना । यदि दूसरे का विचार समझ में न आए, स्वीकार न हो तो अपनी बात दूसरों पर थोपने का प्रयत्न मत करो । दूसरे के विचार को समझने का प्रयत्न करो, परस्पर मिल-बैठकर विमर्श करो । यदि विचार न मिले तो समन्वय का सूत्र खोजो । अनेकान्त का दूसरा तत्व है- समन्वयसूत्र की खोज । यदि विचारों में समन्वय-सूत्र न मिले तो सह-अस्तित्व के सिद्धान्त का अनुशीलन करो । अनेकान्त का एक सिद्धान्त है- दो विरोधी वस्तुएं एक साथ रह सकती हैं । कोई भी तत्व ऐसा नहीं है, जिसका प्रतिपक्ष न हो । हर वस्तु में विरोधी युगल हैं । कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है, जिसमें दो विरोधी धर्म न हो | नेगेटिव और पोजिटिव, ठण्ड और गर्मी- दोनों एक साथ रहते हैं । जो गर्म है, वह ठंडा भी है और जो ठण्डा है, वह गर्म भी है । हम किसे ठंडा मानेंगे और किसे गर्म मानेंगे ? सर्दी और गर्मी, नेगेटिव
और पोजिटिव- सब सापेक्ष हैं । अनेकान्त का प्रयोग आग्रह को कम करता है, तनाव को कम करता है | यदि अनेकान्त का दृष्टिकोण बने तो हम अनेक बीमारियों से निजात पा सकते हैं ।
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