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________________ हृदयरोग : कारण और निवारण १३९ हृदयरोग और कायोत्सर्ग एक प्रयोग है कायोत्सर्ग । यह अनेक समस्याओं से छुटकारा दिलान वाला है | कायोत्सर्ग से शिथिलीकरण होता है, जागरूकता बढ़ती है । उससे रक्ताभिसरण की सारी क्रियाएं ठीक होती हैं | कायोत्सर्ग का अर्थ हैभेदविज्ञान, शरीर को आत्मा से भिन्न कर देना । उसका तात्पर्य है ममत्व का विसर्जन । ममत्व तनाव पैदा करता है । तनाव का पहला बिन्दु है मेरापन, ममत्व । व्यक्ति ने जिस पदार्थ को अपना मान लिया चाहे वह अल्पमूल्य वस्त्र ही क्यों न हो, उसे कोई हानि पहुंचाएगा तो एकदम तनाव पैदा हो जाएगा । यदि वह मेरा नहीं है, तो कोई भी उसे ले जाए, तनाव नहीं होगा। यदि हम तनाव की स्थितियों का विश्लेषण करें तो निष्कर्ष आएगा- अधिकांश तनाव ममत्व के बिन्दु से प्रारंभ होते हैं | कायोत्सर्ग साधन है ममत्व के विसर्जन का । उसका एक सूत्र है- अपने शरीर पर भी ममत्व मत रखो । यदि शरीर पर ममत्व नहीं रखोगे तो शरीर अच्छा काम देगा । यदि शरीर पर ममत्व रखोगे तो शरीर ही तनाव उत्पन्न करना शुरू कर देगा । वह तनाव हृदय को दुर्बल बनाएगा, अनेक बीमारियों को जन्म देगा । अनुभव की वाणी हैकायोत्सर्ग हृदयरोग के लिए सर्वोत्तम दवा है । जब कभी हृदयरोग की समस्या आती है, डाक्टर का परामर्श होता है- बेडरेस्ट लें, पूर्ण विश्राम करें । बेडरेस्ट का सबसे अच्छा प्रयोग है कायोत्सर्ग, प्रवृत्ति का अल्पीकरण । इस अवस्था में ऑक्सीजन की खपत भी कम हो जाएगी, शारीरिक क्रिया भी अपने आप सम्यक् होने लग जाएगी । हमारी रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढ़ेगी, इम्युनिटी सिस्टम भी सक्रिय बन जाएगा, प्राण की सक्रियता भी बढ़ जाएगी । प्राण और अपान प्राण की सक्रियता कायोत्सर्ग की एक महत्वपूर्ण परिणति है । योग के प्राचीन शब्द हैं प्राण और अपान | आज इन दोनों पर शोध होनी चाहिए। प्राण के साथ अपान का बहुत गहरा संबंध है । नाभि से लेकर गुदा तक का स्थान अपान प्राण का स्थान है । जितनी अपान की शुद्धि रहती है उतना ही व्यक्ति स्वस्थ रहता है। जितनी अपान की अशुद्धि रहती है, बेचैनी, उदासी, निषेधात्मक भावनाएं, हृदय को कमजोर करने वाली चेतना जागृत हो जाती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003146
Book TitleMahavira ka Swasthyashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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