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हृदयरोग : कारण और निवारण १३७ का भाग निर्धारित है । यह जो कैलोरी का सिद्धान्त है, उसका भी सदुपयोग कम होता है, दुरुपयोग अधिक होता है । अधिक कैलोरी का भोजन शायद आवश्यक नहीं होता । जितना शरीर को चलाने के लिए, जीवन - यात्रा को चलाने के लिए आवश्यक है, उससे अधिक ही खाया जाता है, बहुत बार खाया जाता है । पाचनतंत्र को अधिक श्रम करना पड़ता है । शरीर की ऊर्जा भोजन के पाचन में ही ज्यादा खप जाती है । हृदय रोग आहार - असंयम का परिणाम है ।
एक
संतुलन की चेतना
प्रश्न है— क्या हृदयरोग के कारणों को मिटाया जा सकता है ? भावनात्मक प्रतिक्रिया पर नियंत्रण किया जा सकता है । नियंत्रण का उपाय है ध्यान | आध्यात्मिक साधना के द्वारा चेतना की ऐसी स्थिति का निर्माण किया जा सकता है, जो समता अथवा संतुलन की चेतना है । संतुलन की चेतना जागती है तो भय कम हो जाता है, अभय की स्थिति बन जाती है । अन्यान्य भावात्मक प्रतिक्रियाएं भी नियंत्रित हो जाती हैं । अकस्मात् सूचना मिलती है— तुम्हारा जो अच्छा लड़का था, वह मर गया । यह सुनते ही एक व्यक्ति वेदना में चला जाता है, पागलपन और विक्षेप की स्थिति में चला जाता है । एक व्यक्ति ऐसा भी है, जो इस संवाद को सुन संतुलित रहता है । पूछा गया - आपका पुत्र चला गया । कैसा लगा आपको ? उस व्यक्ति ने सहज स्वर में कहा- 'योग इतना ही था । अच्छा पुत्र था किन्तु संयोग नहीं था ।' यह अनुभूति और चिन्तन का अंतर क्यों जाता है ? यह अन्तर आता है चेतना की अवस्था के कारण । समता की चेतना के स्तर पर जीने वाला व्यक्ति इस प्रकार के वज्रपात को भी सह लेता है ।
अनेकान्त का प्रयोग करें
मूल प्रश्न है— समता की चेतना का निर्माण कैसे किया जाए ? ये जो संवेगात्मक भावात्मक प्रतिक्रियाएं होती हैं, उन्हें कैसे कम किया जाए ? कैसे जीवन के प्रति जागरूक दृष्टिकोण का निर्माण हो ? सबसे बड़ी बात है दृष्टिकोण का निर्माण । हमारा कोई भी आचरण और व्यवहार बाद में
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