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१३६ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
का अर्थ ही है कि हमारे शरीर के सारे अवयव अपना काम करना बंद कर देते हैं और असमय में ही व्यक्ति मर जाता है । अकाल मृत्यु का एक कारण है अध्यवसान, राग-द्वेष की तीव्रता । अंतःकरण में तीव्र आवेश उभरा, प्रबल आक्रोश आया, हृदय की गति इतनी प्रबल बनी कि वह व्यक्ति की अकालमृत्यु का हेतु बन गई । यदि अकाल मृत्यु नहीं होती है तो वह अध्यवसाय व्यक्ति को बहुत कमजोर बना देता है । हमारे शरीर के अनेक अवयवों पर अध्यवसाय का प्रभाव होता है । हृदय बहुत संवेदनशील है | भावना से बहुत प्रभावित होता है हृदय । क्रोध तीव्र आया और हृदय प्रभावित हो गया । कभी-कभी वह हृदय को इतना प्रभावित करता है कि तत्काल हार्ट-अटैक हो जाता है, व्यक्ति मर जाता है ।
लोभ का तीव्र वेग भी हृदय को दुर्बल बनाता है । यदि लोभ अत्यधिक तीव्र हो जाए तो हृदयाघात से मौत भी हो सकती है । भय का तीव्र वेग भी यही स्थिति पैदा करता है । राजस्थानी का प्रसिद्ध सूक्त है- धसको पडग्यो । भय का इतना वेग आया कि हृदय बैठ गया, आदमी मर गया । कभी-कभी कोई डरावनी शक्ल दिख जाती है तो व्यक्ति भयाक्रान्त हो जाता है । कभीकभी वह सपने में भी भयंकर स्थिति में चला जाता है । एक व्यक्ति जागृत बैठा है । अकस्मात अंधेरा छा गया। कक्ष में पड़ी किसी चीज को देखा, यह कल्पना हो गई कि कोई भूत आ गया । यह सोचते ही हृदय वहीं बैठने लग जाता है । घृणा का वेग भी बहुत खतरनाक होता है । घृणा भी हृदय को कमजोर बनाती है । जितनी भावनात्मक प्रतिक्रियाएं हैं, वे हृदय को दुर्बल बनाती हैं । धमनियों का सिकुड़ना, धमनियों में रक्त के थक्के जमना आदि हृदयरोग के कारण हैं । किन्तु भावनात्मक प्रतिक्रिया सर्वाधिक खतरनाक है ।
हृदयरोग का एक कारण है उचित श्रम का अभाव । यदि शरीर को उचित श्रम नहीं मिलता है तो प्रत्येक अवयव कमजोर होता है । जिस अवयव को जितना श्रम चाहिए, उतना न मिले तो वह निष्क्रिय होता चला जाता
आहार का वैषम्य
हृदयरोग का एक कारण है आहार का वैषम्य । भोजन के लिए कैलोरी
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