________________
१२७ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र है। शब्द निकल रहे हैं और साथ साथ भावना की रश्मियां भी निकल रही हैं। यह पूरी प्रक्रिया चले तो क्रोध को जीतने का सपना सफल बन जाए। मान को मृदुता से जीतो- प्रतिपक्ष भावना है मृदुता । यह अहं-विलय का अमोघ सूत्र है । इसकी सिद्धि के लिए अनुप्रेक्षा की वही प्रक्रिया अपनानी होगी, प्रतिपक्ष भावना को आत्मसात् करना होगा । अनुप्रेक्षा की समग्र प्रक्रिया के बिना ये भावनाएं सफल नहीं हो सकती ।
अनुप्रेक्षा और स्वास्थ्य
___ अनुप्रेक्षा भावनात्मक परिवर्तन का प्रयोग है । इसके साथ स्वास्थ्य का प्रश्न भी जुड़ा हुआ है । क्रोध से कितनी बीमारियां पैदा होती हैं ! केवल मानसिक और भावात्मक ही नहीं, शारीरिक बीमारियां भी पैदा होती हैं । क्रोध का पहला परिणाम यह होता है कि रक्त विषैला बन जाता है । यदि उस समय क्रोधी व्यक्ति का रक्त निकाला जाए और वह रक्त दूसरों को दे दिया जाए तो संभव है वह व्यक्ति बेमौत मर जाए । ऐसी घटनाएं उपलब्ध होती हैं कि माँ भयंकर क्रोध से आविष्ट थी | उसने उसी अवस्था में शिशु को स्तन-पान कराया । परिणाम यह आया कि बच्चा मर गया । क्रोध से इतना विष पैदा होता है । हार्ट अटैक के लिए तो बहुत सहायक है क्रोध । हृदयरोग का मित्र है क्रोध । यह केवल भावात्मक ही नहीं, अनेक शारीरिक बीमारियों का जनक है ।
अहंकार के साथ भी अनेक शारीरिक बीमारियां जुड़ी हुई हैं । जो व्यक्ति अहंकार ज्यादा करता है उसका सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम बहुत सक्रिय हो जाता है । हृदयरोग, पैप्टिक अल्सर आदि अनेक बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है । माया के साथ भी अनेक बीमारियों का अनुबंध है । जो व्यक्ति कपटी है, वह यह सोच मन में बहुत राजी होता है कि मैंने ऐसा जाल बिछाया, जिससे मैं बच गया । वह बाहर से संतुष्ट होता है किन्तु भीतर में न जाने कितनी समस्याएं पैदा कर लेता है । माया में जितना तनाव होता है, क्रोध में उतना तनाव नहीं होता । क्रोध का तनाव होता है किन्तु माया का तनाव उससे ज्यादा भयंकर होता है । वह भीतर ही भीतर पलता रहता है, जिससे अनेक शारीरिक और मानसिक समस्याएं उभर आती हैं । लोभ के साथ भी बीमारियों का बहुत संबंध है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org