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________________ अनुप्रेक्षा और स्वास्थ्य ११९ रहे हैं । व्यक्ति ने ओट ली, संकल्प शक्ति का प्रयोग किया और ऐसा चमत्कार घटित हो गया, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । आज ऐसा लगता है–समस्या बहुत गंभीर बनती जा रही है और कल ऐसा लगता है कि समस्या कुछ है ही नहीं । गंभीर लगने वाली समस्या स्वतः सुलझ जाती है । व्यक्ति को आश्चर्य होता है कि यह कैसे हुआ ? क्या ऐसा हो सकता है ? वस्तुतः यह संकल्प शक्ति के प्रयोग का चमत्कार है । प्रतिपक्ष भावना अनुप्रेक्षा सिद्धांत का एक सूत्र है- प्रतिपक्ष भावना का प्रयोग । यह प्रयोग जैन आगमों में तथा महर्षि पतंजलि के योगदर्शन में बहुत सुन्दर वर्णित है । दशवैकालिक सूत्र का एक श्लोक है— उवसमेण हणे कोहं, माणं महवया जिणे । मायं चज्जवभावेण, लोहं संतोसओ जिणे । उपशम से क्रोध को जीतो, मार्दव से अभिमान को जीतो, ऋजुता से माया को जीतो और संतोष से लोभ को जीतो । यह श्लोक बहुत सरल है किन्तु इसका प्रतिपक्ष भावना के रूप में प्रयोग करें तो यह बहुत महत्वपूर्ण बन जाता है । एक व्यक्ति ने कहा- क्रोध बहुत आता है । कैसे मिटाएं क्रोध ? उपाय बताया- उपशम से क्रोध को जीतो। यह सूत्र बता दिया किन्तु इसकी व्याख्या नहीं की। फिर प्रश्न उभरा-उपशम कैसे आए ? क्रोध को कैसे जीता जाए ? कहा गया- अनुप्रेक्षा का प्रयोग करो, प्रतिपक्ष भावना का प्रयोग करो । क्रोध शान्त हो रहा है, उपशम भाव विकसित हो रहा है- इस बिन्दु पर एकाग्र बनो, आदेश दो, सुझाव दो और इस सचाई का अनुभव करो । केवल उच्चारण मात्र से परिवर्तन घटित नहीं होगा । उपशम से क्रोध को जीतो, यह पढ़ने या रटने मात्र से क्रोध शान्त नहीं होगा। इसके लिए अनुप्रेक्षा की समग्र प्रक्रिया से गुजरना होगा । यदि अनुप्रेक्षा नहीं है तो प्रतिपक्ष भावना सफल नहीं होगी । जब तक अनुप्रेक्षा का सिद्धांत हृदयंगम नहीं होगा तब तक केवल उच्चारण सार्थक नहीं होगा। आप जो होना चाहते हैं, वह तभी हो सकते हैं, जब उद्देश्य निश्चित है, उस पर एकाग्र हो रहे हैं । सुझाव अथवा आदेश की भाषा भावना से अनुप्राणित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003146
Book TitleMahavira ka Swasthyashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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