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________________ ११८ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र साथ दोहराया जाता है । पूरे शरीर पर इस पद्धात का प्रयाग किया जाता अनप्रेक्षा एक सुरक्षा कवच है | जैन साधकों ने इस रूप में उपयोग किया है किन्तु इसका स्वास्थ्य और परिवर्तन की दृष्टि से उपयोग नहीं हुआ। सिर से लेकर पैर तक चौबीस तीर्थंकरों की स्मृति अथवा स्तुति करते हुए प्रत्येक अवयव पर ध्यान किया जाता है । इससे शरीर का सुरक्षा कवच बन जाता है। कोई भी मंत्र की साधना करने वाला मंत्र-साधना के लिए बैठता है तो पहले सुरक्षा कवच का निर्माण करता है । साधना में विघ्न आते रहते हैं और उन विघ्नों के निवारण के लिए शरीर के प्रत्येक अवयव का कवच बना लेता है । अनुप्रेक्षा के इस सिद्धान्त का सुरक्षा कवच के रूप मे प्रयोग किया किन्तु भाव चिकित्सा के रूप में नहीं किया । यह कहा गया- सिर को देखो और ऋषभ का ध्यान करो, भावना करो-ऋषभनाथ मेरे सिर की रक्षा करें । यदि इसके साथ यह प्रयोग होता-सिर की सारी समस्याएं समाहित हो रही है, सिर स्वस्थ हो रहा है तो स्वास्थ्य का प्रश्न भी सुलझ जाता । सिर से पैर तक सुरक्षा कवच के साथ साथ स्वास्थ्य का कवच भी बनाया जाता तो एक नई पद्धति विकसित हो जाती । किन्तु ऐसा प्रयोग हुआ नहीं। पश्चिम के लोगों ने इसका स्वास्थ्य के संदर्भ में प्रयोग किया । वे एक रहस्य को पकड़ते हैं और उसे एक पद्धति के रूप में विकसित कर देते हैं । ओटो जिनिक ट्रेनिंग अनुप्रेक्षा पद्धति की ही संवादी प्रणाली है । इस पद्धति के आधार पर अनेक देशों में प्रयोग चल रहे हैं । जापान में इस पद्धति का काफी उपयोग हुआ है । इसके द्वारा उन्हें भौतिक क्षेत्र में सफलता मिली है, सामाजिक क्षेत्र में सफलता मिली है, साथ साथ साधना का क्षेत्र भी विकसित हुआ है । संकल्प शक्ति का प्रयोग अनुप्रेक्षा सिद्धांत का एक सूत्र है संकल्प शक्ति का प्रयोग । मंत्र होता है संकल्प । जिस व्यक्ति ने सच्चे मन से संकल्प किया, उसने समस्या का समाधान पाया । राजस्थानी में कहा जाता है संकट के क्षण में देवी-देवता की ओट ली । यह ओट क्या है ? यह संकल्प शक्ति का प्रयोग है । जो प्रयोग अनाथी मुनि ने किया था, वही प्रयोग आज न जाने कितने लोग कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003146
Book TitleMahavira ka Swasthyashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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