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११० महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र पास रोगी जाता है तो चिकित्सक सबसे पहले सुझाव देता है— “तुम बिल्कुल ढीले होकर सो जाओ ।' मांसपेशियों की शिथिलता, मस्तिष्कीय स्नायुओं की शिथिलता, पूरे शरीर की शिथिलता- बिल्कुल ढीला छोड़ दो । इस स्थिति में प्राण का संतुलन हो जाता है । प्राण का संतुलन कायोत्सर्ग की मुद्रा में होता है ।
प्राण संतुलन का प्रयोग
असंतुलित प्राण अनेक बीमारियों के लिए उत्तरदायी है | प्राण के असंतुलन की बीमारी को अभी मेडिकल साइंस ने भी नहीं पकड़ा है । जहां भी प्राण ऊर्जा ज्यादा इकट्ठी हो गई, कोई न कोई गड़बड़ी जरूर पैदा करेगी । शरीर में प्राण ऊर्जा संतुलित रहनी चाहिए । नाड़ियों में प्राण ऊर्जा का प्रवाह संतुलित होना चाहिए। जहां ऊर्जा ज्यादा इकट्ठा हुई, वहां समस्या पैदा हो गई। मनुष्य के कामकेन्द्र में ज्यादा इकट्ठा हुई तो काम वासना प्रबल हो जाएगी। वह इतनी बढ़ जाएगी कि उसे सहन करना कठिन हो जाएगा । जहां भी प्राण ऊर्जा आवश्यकता से ज्यादा इकट्ठी होगी, बीमारी पैदा कर देगी | नाभि में ज्यादा हो गई तो गुस्सा आने लग जाएगा, चिड़चिड़ापन बढ़ जाएगा, अनेक विकृतियां पैदा हो जाएंगी । प्राण का संतुलन रहे तो व्यक्ति अनेक विकृतियों से बच सकता है । प्राण-संतुलन का एक सुन्दर उपाय है- कायोत्सर्ग । जहां शिथिलता होती है, वहां प्राण ऊर्जा का असंतुलन संतुलन में बदल जाता है | प्राण का प्रवाह अपने आप ठीक हो जाता है ।
प्राण-संतुलन का एक उपाय है— मंद श्वास । श्वास को मन्द करना बहुत जरूरी है | अच्छे स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी शर्त यह है कि श्वास कभी तेज न हो । कायोत्सर्ग करें, श्वास अपने आप मन्द हो जाएगा । कायोत्सर्ग करने से पूर्व श्वास की संख्या का माप करें और दस मिनट कायोत्सर्ग करने के बाद श्वास की संख्या का माप करें तो पाएंगे कि श्वास की संख्या कम हो गई है, मन्द हो गई है । प्राण का संतुलन, श्वास को मन्द करना, यह सब कायोत्सर्ग की अवस्था में सहज प्राप्त होते हैं ।
अनिद्रा और कायोत्सर्ग
अनिद्रा का रोग आज बहुत व्यापक हो रहा है । नींद नहीं आती, बड़ी
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