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कायोत्सर्ग और स्वास्थ्य
अध्यात्म के क्षेत्र में अनेक प्रयोग आविष्कृत हुए, उनमें कायोत्सर्ग आधारभूत प्रयोग रहा । कायोत्सर्ग के होने पर दूसरे प्रयोग सहज सिद्ध हो जाते हैं । इसके अभाव में कोई भी प्रयोग पूरा सफल नहीं बनता । इसलिए कायोत्सर्ग को अध्यात्म साधना की आधारशिला कहा गया है । ध्यान के सारे प्रयोग कायोत्सर्ग से प्रारंभ होते हैं । - कायोत्सर्ग का प्रयोग बहुत व्यापक है । हठयोग का शब्द है—शवासन, मुर्दे की तरह हो जाना । जैनयोग का शब्द है- कायोत्सर्ग । इसमें मुर्दा जैसा नहीं बनना है, काया का उत्सर्ग करना है । इसमें शारीरिक प्रवृत्तियों का शिथिलीकरण होता है । केवल शिथिलीकरण ही नहीं, चैतन्य के प्रति जागरूकता भी होती है । कायोत्सर्ग का सबसे बड़ा सूत्र है— ममत्व का विसर्जन । जब तक ममत्व की ग्रंथि प्रबल रहती है, अध्यात्म की साधना भी नहीं होती और शारीरिक-मानसिक बीमारियों के लिए एक पृष्ठभूमि भी तैयार रहती है। कोई भी शरीर या मन की बीमारी किसी ग्रंथि की प्रबलता के कारण ही आ सकती है, पनप सकती है और अपना डेरा जमा सकती है । सबसे बड़ी बात है ममत्व का विसर्जन । शरीर के प्रति हमारी आसक्ति न रहे तो शरीर अधिक काम देता है । शरीर के प्रति आसक्ति बढ़ती है तो फिर वह भी बीमारियों का साथ देने लग जाता है ।
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