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१०६ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
मस्तिष्क में सारे स्थान निश्चित हैं । जितने भाव प्रकट होते हैं उन सबके हमारे मस्तिष्क में स्थान हैं । जो वृत्ति पैदा होनी शुरू हुई है, जो भाव पैदा होना शुरू हुआ है, उसी पर ध्यान टिका दें, देखना शुरू कर दें, बीमारी आगे नहीं बढ़ेगी ।
चिकित्सा का महामंत्र
यह प्रेक्षा मानसिक चिकित्सा, भाव चिकित्सा और शरीर चिकित्सा का महामंत्र है । बीमारियां तीन प्रकार की हैं- शरीर की बीमारी, मन की बीमारी और भाव की बीमारी । तीनों की चिकित्सा का सूत्र है - शरीर को देखें, मन को देखें, भाव को देखें और भाव के स्रोत को देखें । यह चिकित्सा का सूत्र इतना महत्वपूर्ण है कि यदि इस पर सम्यक् मनन करें, स्रोत को खोजें तो गहराई में पहुंच सकते हैं । क्रोध का स्रोत कहां है ? क्रोध कहां पैदा होता है ? मेडिकल साइंस में इसका बहुत अच्छा ज्ञान मिल सकता है । उस बिन्दु पर ध्यान टिकाएं, उस बिन्दु को देखने का प्रयत्न करें, तो जीवन का कायाकल्प हो सकता है । दर्शन की पद्धति अध्यात्म चेतना के जागरण की पद्धति है, चिकित्सा की पद्धति है । इसका सम्यक् मूल्यांकन और उपयोग कर हम अनेक शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं ।
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