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अध्यात्म के परिपार्श्व में
सकता । ये चीजें तो अखण्ड हैं, शाश्वत हैं, सनातन हैं। इसी प्रकार जैनधर्म भी शाश्वत है, सनातन है, उसे खंडित करके सम्प्रदायों में बांटा नहीं जा सकता । यदि जैनधर्मावलम्बी उदारता से, विशालहृदयता से काम लें तो जैनधर्म का, जैन संस्कृति का अधिक प्रचार-प्रसार कर सकते हैं। इस आलोकपुंज को अपने पास ही न रखें, इसका परिग्रह न करें, इससे मान-जाति के अन्तर्बाह्म को आलोकित होने दें।
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