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अध्यात्म के परिपावं में
नहीं है । जहां ८० प्रतिशत हिन्दू रहते हों उस देश को “हिन्दू राष्ट्र" का अभिधान देना अनुचित नहीं कहा जा सकता । लेकिन हमें हिन्दू को व्यापक अर्थ देना होगा । 'हिन्दू का सम्बन्ध किसी सम्प्रदाय के साथ नहीं है । उसका सम्बन्ध समाज, संस्कृति, राष्ट्रीयता अथवा भारतीयता के साथ है।" युवाचार्य महाप्रज्ञ की यह उदार दृष्टि हिन्दुत्व को भारतीयता या राष्ट्रीयता का पर्याय मानती है । उनका यह कथन भी पूर्णतः सत्य है कि सम्प्रदाय का सम्बन्ध अपनी अपनी धार्मिक मान्यता से जुड़ा होता है । मातृभूमि या राष्ट्रीयता से उसका सम्बन्ध नहीं है-हर सम्प्रदाय अपने लिए स्वतन्त्र राष्ट्र या स्वायत्त शासन की कल्पना संजोए हुए है । यदि वह मानसिकता आकार ले ले तो किसी विशाल राष्ट्र की कल्पना ही नहीं की जा सकती ?" साम्प्रदायिकता ने भारत का जितना अहित, अनिष्ट किया उतना किसी देश का नहीं किया। हिन्दू. मुसलमान दोनों की कट्टर साम्प्रदायिक भावना का परिणाम देश के विभाजन के रूप में सामने आया और १९४७ के पश्चात् से आज तक भारत में असंख्य बार, अनेक नगरों-गांवों में साम्प्रदायिक दंगे होते रहे हैं. आज भी हो रहे हैं। उन दंगों में दोनों सम्प्रदाय के लोगों की बहुमूल्य जानें गईं, उनके मकान, दुकान सब अग्निकाण्ड में जलकर राख हो गए। भारत में साम्प्रदायिकता का विष बड़ा भयानक है। यह 'AIDS' एड्स की भांति जानलेवा रोग बन चुका है । जाति, साम्प्रदाय एक फुटबाल की गेंद बने हुए हैं राजनीति के खेल में । भारत की राजनीति में उन लोगों का अभाव खटकता है जो चरित्र, ज्ञान, दृष्टि (Vision) और योग्यता (Calibre) से सम्पन्न होते हैं। राजनीति नैतिकताविहीन होने से संहारक, अनिष्टकारी बन जाता है । उसमें निरंकुशता होती है । धर्म को राजनीति में खींचतान लाने वाले स्वयं तो धर्म से दूर होते हैं और लोगों को धर्म के नाम पर लड़वाते हैं। रामजन्मभूमि का प्रश्न भी राजनीति ने उलझाकर रख दिया, वरना राममंदिर बनाने पर भला किसे एतराज होता । राम तो भारत की अस्मिता के प्रतीक हैं । भारतीयता में जो श्रेष्ठता है वह राम के बजूद के कारण ही है । डाक्टर इकबाल ने ठीक कहा है
है राम के वुद पे हिन्दोस्ता को नाज, अलहे-नजर समझते हैं उसको इमामे-हिन्द । एजाज इस चिरागे-हिदायत का है यही, रोशनतर अज सहर है जमाने में शामे हिन्द । तलवार का धनी था, शुजाअत में फर्द था,
पाकीजगी में, जोशे-मूहब्बत में फर्द था । १. आमंत्रण आरोग्य को-युवाचार्य महाप्रज, पृ० ७० २. आमंत्रण आरोग्य को---युवाचार्य महाप्रज्ञ, पृ० ७०
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