SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मानव-धर्म और असाम्प्रदायिक दृष्टि ६५ साथियों को की कलई खुल जाती है । वह स्वयं तो ठगा हो जाता है अपने मी लुटवाता है । यदि कपड़े पर खून लग जाए तो वह अपवित्र हो जाता है परन्तु जो मनुष्य का खुन पीते हैं – दूसरों का शोषण करते हैं उनका चित्त किस प्रकार निर्मल रह सकता है !" कहते हैं गुरुनानक ने धनी व्यक्ति के यहां उस समय भोजन करने से मना कर दिया था जब उसकी पूड़ियों को हाथ में लेकर दबाया तो उनसे खून टपकने लगा था । यह थी उस धनी व्यक्ति की शोषणार्जित कमाई । शोषण धर्म के, मानवता के प्रतिकूल है । अहिंसा, शान्ति, आन्तरिक पवित्रता, सह-अस्तित्व, मानवीय एकता साम्प्रदायिक सद्भावना, प्रेम, करुणा, संयम, मानवधर्म है । भाषा जाति, सम्प्रदाय, प्रान्त से ऊपर उठकर शोषण विहीन समाज की संरचना करना मानव-धर्म है | मंदिर-मस्जिद या गुरुद्वारे में जाना धर्म का बाह्य रूप है, इसमें भेद हो सकता है, लेकिन धर्म के आन्तरिक स्वरूप में कोई भेदभाव नहीं, वहां समानता है । कुरान शरीफ में कहा गया है - नेकी यह नहीं कि तुम अपने चेहरे को पूर्व की ओर करो या पश्चिम की ओर, बल्कि नेकी यह है कि आदमी अल्लाह को माने - सच्चे दिल से उसकी सत्ता में विश्वास करे, अन्तिम दिन ( न्याय के दिन ) को और फरिश्तों को, अल्लाह की भेजी हुई किताब ( कुरान शरीफ) को तथा उसके संदेशवाहक (पैगम्बर साहब ) को माने । और अल्लाह के प्रेम में अपना धन खर्च करे, उसे नातेदारों पर, अनाथों पर, निर्धनों पर, मुसाफिरों ( भिखारियों) पर सहायतार्थ हाथ फैलाने वालों पर, गुलामों (दास) की रिहाई पर खर्च करे । नमाज पढ़े और दान दे, खैरात करे । और नेक वे लोग हैं जो वचन दें, उसे पूरा करें और तंगी विपत्ति के समय में, सत्य और असत्य के युद्ध में धैर्य रखें ।” जब हम भारत की दिशा का अवलोकन करते हैं तो देखते हैं लोगों में अनास्था, अविवेक, अनैतिकता, द्वेष, ईर्ष्या, वेर, अश्रद्धा, अहिंसा, संकीर्ण साम्प्रदायिकता का ही विस्तार मिलता है । यह सच्चा भारत नहीं है । जो भारत नैतिकता-विहीन हो वह असल भारत नहीं । आज आस्था तथा नैतिकता का अभाव है । दूसरी ओर भारत में राजनीति भी अनैतिकता के सहारे खड़ी | नैतिकता शून्य राजनीति, हितकर नहीं होती । आज जो आदमी धार्मिक दिखाई देता है, उसमें नैतिकता का अभाव है । हवा कुछ ऐसी चल रही है कि लोग धर्म और राजनीति को एक कर रहे हैं । राजनीति में नैतिकता हो, धर्म हो तो ठीक है, लेकिन धर्म को राजनीति में शामिल करना खतरनाक होता है । धर्म के नाम पर -- ' इस्लाम खतरे में है' या 'हिन्दू धर्म खतरे में है' ऐसे नारे लगाकर वोट की राजनीति चलाना देश के हित में नहीं कहा जा सकता । हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा बुरी बात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy