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अध्यात्म के परिपार्श्व में
में हिंसा का संस्कार न हो और हिंसा का संस्कार स्मृति के रूप में जागृत न हो तो वर्तमान की हिंसा कोई कर नहीं सकता ।" अतः हमारी स्मृति धुंधली और हमारे संस्कार दूषित नहीं होने चाहिए । हमें उसे शुद्ध, पवित्र और शुभ कर्मों में लगाना चाहिए, परहित की ओर उन्मुख करना चाहिए, क्योंकि 'परहित सरिस धरम नहीं भाई, पर पीड़न सम नहीं अधमाई ।' परपीड़न की बात असंयम के, मर्यादा के अनुशासनहीनता के कारण उत्पन्न होती है । भर्तृहरि कहते हैं
मनसि वर्चास काये पुण्यपीयूषपूर्णा
स्त्रिभुवनमुपकारश्रेणिभिः
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प्रीणयतः
परगुणपरमाणून्
पर्वतीकृत्य नित्यं
निज हृदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः ।
अर्थात् जिसका मन, वचन और काय पवित्रता रूप पीयूष से पूर्ण है, और जो रात-दिन उपकारपरायण रहकर तीन लोक को प्रसन्न रखते हैं। किसी में परमाणु प्रमाण गुण हो तो पर्वताकार वर्णन करने में जिन्हें सुख मिलता है, जिनका हृदय प्रफुल्ल होने के लिए दूसरे में गुण ही ढूंढता रहता है, संसार में ऐसे शिष्टाचार-परायण पुरुष कितने हैं । पैगम्बरे इस्लाम तो फरमाते हैं कि सबसे अच्छा मुसलमान वह है जिसका अखलाक सबसे अच्छा हो और जिसके हाथों उसका पड़ौसी संरक्षित हो, सुरक्षित हो । यही कर्तव्यनिष्ठा है, मर्यादा और अनुशासनप्रियता है । अनुशासन दूसरे के लिए नहीं, अपने लिए हो । हमें पहले स्व को अनुशासित करना चाहिए, तब हम दूसरों को अनुशासन की ओर ले जाने की बात कह सकते हैं । हम स्वयं जब अनुशासनहीन हैं तो दूसरों को कैसे अनुशासित बना सकते हैं ? और यदि सब अपने-अपने स्थान पर अनुशासित, मर्यादित, संयमित हों तो फिर सुख-समृद्धि के बन्द द्वार स्वयमेव खुल जायेगे । गांधीजी का व्यक्तित्व, उनका जीवन अनुशासन का प्रतीक है । उन्होंने पहले स्वयं को अनुशासन में बांधा, और बाद जो भी उनके सम्पर्क में आया वह खुद-ब-खुद अनुशासन में बंधता चला गया । अनुशासन चाहे बाह्य हो या आन्तरिक, वह व्यक्ति को शासन में, संयम में रखने का काम करता है । व्यक्ति देश, काल और परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में नियम-निर्धारण करता है, नियम ही समाज को सुव्यवस्था प्रदान करते हैं, अतः सुव्यवस्था ही अनुशासन है । अनुशासन से समाज और देश की उन्नति प्रगति प्रसृत दिखेगी । इससे विश्वास और योग्यता का अभिनिर्वतन होता है, विषमता का हनन और समता का संपोषण होता है । एलाचार्य मुनि विद्यानंद जी ने नियंत्रण को अनुशासन माना है । उनका विचार है -- " मनुष्य पर समाज और संविधान का नियंत्रण है, ऋतुओं पर काल का नियंत्रण है और बढ़ती हुई नदियों पर तटों का नियंत्रण
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