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अनुशासन : विविध आयाम
है । अनुशासन से जीवन दुर्घटनाओं से बचता है, गन्तव्यों को पा लेता है और ऊंचे उठने के अवसर प्राप्त करता है । अनुशासन की लगाम घोड़े के मुंह पर लगी हुई है, उसके सहारे वह ठीक चलता है। बिना अंकुश का हाथी और अनुशासनरहित समाज विनाश की ओर ले जाता है।" गांधी बार-बार राम-राज्य की बात करते थे, वह इसलिए कि रामराज्य कर्तव्यनिष्ठा और अनुशासन की भित्ति पर खड़ा है। 'मानस' में तुलसी ने जिस रामराज्य का चित्रांकन किया है वहां सर्वोदय और सर्वजनहित का आदर्श विद्यमान है। सभी नर-नारी, बाल वृद्ध, स्वामी-सेवक, राजा-प्रजा अपने-अपने कर्तव्य के प्रति सचेत हैं । कोई अधिकार की बात नहीं कहता, दूसरे के कर्तव्य की ओर भी कोई उंगली नहीं उठाता, सब अपने-अपने धर्म को, कर्तव्य को पूर्ण आस्था एवं निष्ठा से परिसम्पन्न करते हैं। अच्छी तरह किये गये दूसरे के काम से अपना साधारण-सा काम कहीं अधिक श्रेष्ठ और महान् होता है-'श्रेयान् स्वधर्मो विगुणः परधर्मात् स्वनुनिष्ठितात्" (गोता) । जहां कर्त्तव्यनिष्ठा होती है वहां अधिकारों की संप्राप्ति में बाधा नहीं पड़ती। कर्तव्यपालन अधिकार प्राप्ति का द्वार खोलता है-"कर्मण्येवाधिकारस्ते ।" आज हम कत्तंव्यविमुख होकर अधिकारों का राग अधिक अलापते हैं । पश्चिमी देशों से हमने बहुत-सी बातें सीखीं, परन्तु जो नहीं सीखी, वह है अनुशासन । पश्चिमी देश हम से अधिक अनुशासन प्रिय हैं। वहां रेल या बस में चढ़ने की इतनी भागदौड़ नहीं होती जितनी यहां होती है । हम समय के मूल्य को नहीं समझते, पौरुष को भूल बैठे हैं। नियम, संयम या अनुशासन से दूर होते जा रहे हैं । यदि अनुशासन भारत में कहीं है तो सेना में, जिस पर हमारा गर्वोन्नत होना सहज है । काश ! इस प्रकार की कर्तव्यनिष्ठा, अनुशासनप्रियता हमारे जीवन में उतर आये। फिर हम अचिरात् उन्नत देशों की श्रेणी में स्थान पा सकते हैं ।
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