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________________ अनुशासन : विविध आयाम पलड़ा भारी बनाना चाहते हैं और सिद्धांतों की इस अंधेरी कोठरी में आदमी खो गया है, उसका कहीं स्थान नहीं । देश की समस्याएं अलग पड़ी रहती हैं। आज हमें सभी भेदभाव भूलकर, मनुष्य को उसका सही स्थान देने का संकल्प लेना चाहिए । कवीन्द्र रवीन्द्र ने भी भारत-तीर्थ में गया है कि भारत के महामानव रूपी सागर के तीर पर नरदेवता के अभिषेक के लिए सभी भेदभाव भूलकर हे समस्त भारतवासी आर्य, अनार्य, हिन्दू-मुसलमान और क्रिश्चियन - तुम आओ ! गुरुदेव ने ईश्वर को एक नैतिक पुरुष माना है । नैतिक पुरुष में ही संयम, मर्यादा और अनुशासन पाया जाता है । ये भी नैतिकता के लक्षण हैं । यहां हमारी अनुशासन की अवधारणा आन्तरिक रूप धारण कर लेती है । आन्तरिक अनुशान में आत्मसंयम और आत्मनिग्रह के साथ दूसरे विकारों के निवारण की बात भी आ जाती है । 'महाभारत' में भीष्म महाराज युधिष्ठर को शिक्षा देते हैं—गणों में, कुलों तथा राजाओं में वैर की अग्नि प्रज्वलित करने वाले ये दो दोष हैं - ( १ ) लोभ ( २ ) अमर्ष । पहले एक मनुष्य के मन में लोभ उत्पन्न होता है, फिर दूसरे के मन में अमर्ष । और ये मनुष्य धन-जन की भारी क्षति उठाकर एक दूसरे के विनाश पर उतारू हो जाते हैं । आज यही लोभ और अमर्ष की कुवृत्तियां मनुष्य को एक दूसरे का जानी दुश्मन बनाए है । व्यक्तिगत झगड़ों में उलझे व्यक्ति न केवल अपना विनाश करते हैं, परन्तु वे समाज को भी रसातल की ओर ले जाते हैं | लिंकन ने कहा था - व्यक्तिगत झगड़ा बिलकुल न करो । जिस व्यक्ति को उन्नति या श्रेष्ठता प्राप्त करनी है, वह व्यक्तिगत झगड़े के लिए व्यर्थ समय बरबाद नहीं करेगा । कुत्ते से काटे जाने की अपेक्षा अच्छा है कि उसे रास्ता दे दिया जाय। आज हम रास्ता न देकर दूसरों का रास्ता रोकते हैं, और अपने ही लिए मुसीबतों को आमंत्रित करते हैं । हम दूसरों को हल्का बनाने की अपेक्षा खुद भारी होते जा रहे हैं, दुर्भावनाओं की गठरी के बोझ से दबे जा रहे हैं । विवेकहीनता ही यह परिणाम है । एक गधे के पानी में बैठने से नमक की बोरी हल्की हो जाती, दूसरा रुई वाला गधा अपने को हल्का करने के लिए जब पानी में बैठता है तो भारी हो जाता है । उसे इसका विवेक नहीं रहा कि मेरे ऊपर रुई है । मनुष्य का धर्म तो यह है कि वह स्वयं हल्का बने, दूसरों को हल्का बनने में सहायता करे । अपने मन को रागद्वेष, लोभ घृणा हिंसा अत्याचार से मुक्त रखे, दूसरों को मुक्त होने में सहायता दे । बुरे संस्कारों को छोड़ना मर्यादा की, अनुशासन की ओर जाना है । युवाचार्य महाप्रज्ञ ने कहा है - "क्रियमाण हिंसा उतनी हिंसा नहीं होती, जितनी कि स्मृति की हिंसा होती है । वर्तमान की जो घटना है वह हिंसा तो है ही, किन्तु वह हिंसा का मूल नहीं । हिंसा का मूल है स्मृति । यदि मन Jain Education International ५७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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