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________________ अनुशासन : विविध आयाम अनुशासन और मर्यादा किसी प्रकार का बंधन नहीं, यह तो मुक्ति का उपक्रम है। हम यदि सभी कार्यों को संयम से, अनुशासन से, मर्यादा से, नियम से करें तो न केवल कार्य को सुगम और शीघ्रतापूर्वक पूरा कर सकते हैं, बल्कि दूसरों के लिए अनावश्यक पंदा की जाने वाली परेशानियों के दोष से बच सकते हैं । यह तो स्वभावगत होना चाहिए । प्रकृति के सभी पदार्थ अनुशासित हैं, मर्यादा अथवा संयम में बंधे हैं। सूर्य समय पर उदय और अस्त होता है. मौसमों में निश्चित समय पर परिवर्तन होता है, वृक्षों के पत्ते पीतवर्ण होकर समय पर गिर पड़ते हैं, समय पर उसमें पल्लव विकसित होते हैं, फूल और फल आते हैं। यह सकल प्रक्रिया एक अनुशासन में, नियमानुसार होती है । प्रकृति के पदार्थों में यदि किसी प्रकार का अनुशासन भंग हो जाय, वे अपनी मर्यादा या संयम का बहिष्कार कर दें तो फिर देखिये कितना अनिष्ट होगा, विनाश-लीला होगी। यही बात समाज पर, मनुष्य पर लागू होती है। दिनकरजी ने कहा है, "प्रजातन्त्र का अनुशासन ढीला होता है, और कानून उनके उदार होते हैं इतने उदार कि उनका फायदा अपराधी भी उठाता है । शहरों और देहातों में जो बदअमनी बढ़ रही है, उसका कारण यही है कि कानून उदार है और उसकी प्रक्रिया अपराधियों की सहायता करती है । जनता सबसे पहले समाज में शान्ति और सुरक्षा चाहती है, मगर अपराधी जब दण्डित नहीं किये जा सकते अथवा वे ऊची जगहों पर आदर और सत्कार पाते हैं, तब प्रजातन्त्र का मुकदमा कमजोर हो जाता है।" अतः अनुशासन की, शान्ति और सुरक्षा की स्थिति बनाने के लिए दण्डव्यवस्था अनिवार्य है। हमेशा अहिंसा और क्षमा से समाज का हित नहीं हो सकता। न्याय या कानून सबके लिए बराबर होना चाहिए, कोई इनसे बड़ा नहीं । “महाभारत'' के शान्तिपर्व में राजा को दुष्टों व समाज के अनैतिक तत्त्वों का दमन करने के लिए दण्ड धारण करना आवश्यक माना गया है। दण्डहीन राजा के राज्य में शान्ति स्थापित नहीं हो सकती । दण्ड के द्वारा धर्म, अर्थ और कर्म की अनुप्राप्ति संभव है। तुलसी ने स्पष्टतः घोषणा को-' जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी । सो नृप अवस नरक अधिकारी ।। राम ने मर्यादाहीन रावण को अनुशासित किया, उसे दण्डित कर सीता को विमुक्त किया। उनका राज्य-परित्याग भी अनुशासन एवं मर्यादा की रक्षार्थ था, सीता के परित्याग में भी लोकमर्यादा का सम्मान सन्निहित अनुशासन को दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं : (क) बाह्य अनुशासन (ख) बान्तरिक अनुशासन जहां तक बाह्य अनुशासन का सम्बन्ध है, उसे हम मनुष्यों में, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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