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________________ अनुशासन : विविध आयाम सापेक्ष दृष्टि से वस्तुओं और समस्याओं का अध्ययन और मनन किया जाय तो कोई स्थायी एवं सर्वग्राही समाधान खोजा जा सकता है; परन्तु आज हमारी दृष्टि में पत्राग्रह अधिक रहता है; इसी से समस्याएं सुलझने के बजाय उलझती जाती हैं। सभी क्षेत्रों में अशांति है, अव्यवस्था है - संसद से लेकर सड़कों तक एक अजीव तरह की आपा-धापी है, भागदौड़ है, हलचल है, बेचनी है । संसद हो या राज्यों की विधानसभाएं वहां की कार्यवाही को देखिये, मन्त्रियों, सदस्यों के व्यवहार का निरीक्षण कीजिए। वहां एक दूसरे पर कीचड़ ही नहीं उछाली जाती, उन पर दोषारोपण ही नहीं किया जाता, व्यक्तिगत आक्षेप के शर-संधान ही नहीं किये जाने बल्कि खूब जूतियां चलती हैं, हाथापाई और बोलधप्पा होता है । बड़ी ही निंदनीय और लज्जाजनक स्थिति होती है वहां, परन्तु हमारे ये माननीय सदस्य या मंत्रीगण मस्त हैं । फिर आप कैसे आशा करेंगे कि ये देश के कर्णधार बनकर देश को प्रगति उन्नति के मार्ग पर ले जाने की क्षमता रखते हैं । यह माना कि कुछ मंत्रीगण या सदस्य मर्यादा एवं अनुशासन के प्रति अति सजग हैं, मगर अधिकतर तो अपने कर्त्तव्य के प्रति उदासीन रहते हैं। चीनी दार्शनिक लाओत्से ने कहा था कि राजा को अगर कंचन से तो समाज में चोरी कोई नहीं करेगा । राजा हवा है, जनता धान का पौधा । हवा जिधर को बहती है पौधा उधर झुक जाता है । और है भी यही स्थिति । हमारे मंत्रीगण या विधान सभा, संसद के सदस्यों के कंचन - मोह को देखिए । फिर जनता में यदि काले धन के प्रति, स्मगलिंग के प्रति मोह बढ़ता है तो इसमें आश्चर्यं क्या ? आखिर उस मोह को अंकुरित होने के लिए खान-पानी कहां से मिलता है ? कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे नेताओं में अनुशासन और मर्यादा की कमी है, जिसका कुप्रभाव समाज और जाति पर पड़े बिना नहीं रहता । कितना लज्जास्पद एवं घृणित बात है कि प्रधानमंत्री के जहाज के तार काट कर उसे दुर्घटनाग्रस्त करने का मंसूबा अप्रैल के अन्त में बनाया गया । इसे अनुशासनहीनता का कितना घिनौना कार्यं कहा जायेगा । यदि सामाजिक स्तर पर अनुशासनहीनता देखनी हो तो कदम-कदम में उसका रक्तरंजित रूप हत्याकाण्ड, डकैती, बस-रेल लूटना, साम्प्रदायिक दंगे, हरिजनों पर ढाये जाने वाले अत्याचार, कितने ही रूपों में उसे देखा जा सकता है । घृणा हो जाय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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