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अध्यात्म के परिपार्श्व में
दूध में डुबोकर वर-वधू की रोगों को दूर करता है । यह भगवान् बुद्ध को बोधि- - वृक्ष
के
है । कुशाग्रास भी पवित्र है । हरी दूब को आरती उतारी जाती है। नीम का वृक्ष कई शीतला माता का निवास माना जाता है । नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई है । भगवान् महावीर ने भी वृक्ष के नीचे बैठकर तप-ध्यान किया । आम के पत्तों से वंदनवार बनाया जाता है । केले के पत्तों से शोभाद्वार बनाते हैं । वट-वृक्ष भी पवित्र वृक्ष माना जाता है । इसकी सुदीर्घ लटकने वाली जड़ें शंकरजी की जटा स्वरूप समझी जाती हैं और सुहागिन स्त्रियां अपने पति के सुदीर्घ जीवन की कामना करते हुए वट वृक्ष की पूजा करती हैं । 'वृक्ष आयुर्वेद' के तरु महिमा अध्याय में कहा गया हैदशकूप समः वापी, दशवापीसमो हृदः । दशहृदः समो पुत्रो, दशपुत्राः समो द्रुमः
!
यानी एक बावड़ी दस कुओं के बराबर होती है । एक तालाब दस बाड़ियों के बराबर होता है, एक पुत्र दस तालाबों के बराबर होता है और एक बृक्ष दस पुत्रों के बराबर होता । अब इससे अधिक वृक्ष की महिमा का क्या बखान हो सकता है ! जब पांच वृक्ष रोपण से १४ पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है तो फिर उनके काटने से मनुष्य को कितनी भयानक अघानल में जलना होगा, यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।
भगवान् कृष्ण ने 'गीता' में वनस्पति की, प्रकृति की महिमा निज स्वरूप में बार-बार की है । उन्होंने कहा है कि नदियों में मैं गंगा हूं ( १०, ३१), ऋतुओं में मैं बसंत हूं ( १०,३५), जलाशय में मैं समुद्र हूं (१०,२४), गौओं में मैं कामधेनु हूं ( १०२८), उनचास वायु देवताओं का तेज और नक्षत्रों में मैं चन्द्रमा हूं ( १०,२१ ) । एक स्थान पर वृक्षों में पीपल वृक्ष अपने को कहा है – अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां ( १०, २६) । सिन्धु घाटी सभ्यता में पीपल को पवित्र वृक्ष माना गया था । उस काल की मुहरों पर पीपल की तस्वीर है, उस पर एक देवी बैठी है । पीपल सभी गांव-नगरों में हम देखते हैं । इसे पवित्र तो माना जाता है ही— इसको त्रिमूर्ति माना जाता है यानी इसकी जड़ ब्रह्मा है, छाल विष्णु है, शाखाएं शिव हैं, साथ में यह स्वास्थ्यवर्धक है । पीपल ही एक ऐसा वृक्ष है जिसकी पत्तियों से रात्रि में भी ऑक्सीजन निकलती है जबकि अन्य वृक्षों से रात में कार्बन डाइ आक्साइड निकलती है । इसलिए रात में पीपल के पेड़ के नीचे सोया जा सकता है । पीपल को पानी देना शुभ माना जाता है और सैयद इब्राहीम रसखान (१५५८-१६१८) को तो वे करील की कुंजें इतनी प्यारी, मूल्यवान हैं कि उन पर वह लाखों स्वर्ण महल निछावर कर सकते हैं क्योंकि उनके नीचे कृष्णजी ने विहार किया था, केलि की थी -
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