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वृक्ष हमारे लिए पूज्य हैं
जब यह कहा जाता है कि वृक्ष हमारे लिए पूज्य हैं तो इससे तात्पर्य यह है कि वृक्ष-सम्पदा की हमें रक्षा करनी चाहिए क्योंकि उनकी समृद्धि मानव-जीवन की समृद्धि है और एक महान् अहिंसा भी है। वनस्पति का हर तरह से संरक्षण करना चाहिए। हम वनस्पति का, पेड़-पौधों का संरक्षण कर कई प्रकार से पुण्य के भागी बनते हैं। 'आचारांग' में वनस्पति-संरक्षण का विशदता से रेखांकन किया गया है। जो व्यक्ति नाना प्रकार के शस्त्रों से वनस्पति-सम्बन्धी क्रिया में व्याप्त होकर वनस्पतिकायक जीवों की हिंसा करता है वह वनस्पतिकायिक जीवों की हिंसा ही नहीं करता, नाना प्रकार के अन्य जीवों की हत्या, हिंसा भी करता है
जमिणं विरूवरूवे हिं सत्थे हिं वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं, वणस्सइसत्थं समारंभमाणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिंसति ।
-आचारांग-शस्त्र-परिज्ञा, १०१ यदि एक वृक्ष को काटा जाता है तो उसके साथ पक्षियों के घरों को उजाड़ा जाता है, विहग-शावक अनीड हो जाते हैं, छोटे-बड़े कीट-पतंगों का आश्रय-स्थल नष्ट हो जाता है और फलदार वृक्षों को काटने पर लोग, अन्य पशु-पक्षी उनके फलाहार से वंचित हो जाते हैं। शाकाहार में कमी आ जाती है । जिन छायादार वृक्षों के नीचे बैठकर पथिक अपनी श्रांति मिटाते हैं, तपती धूप में राहत महसूस करते हैं, पशु-पक्षी भी वहां आराम करते हैं। ये सब सुख आराम देने वाला वृक्ष होता है और उसे ही हम काटकर अपने आपको भौतिक दृष्टि से परिसम्पन्न बनाते हैं। लेकिन यह भूलते हैं कि उतना ही दरिद्र तथा प्रदूषित अपने वातावरण को बनाते हैं। वृक्षों को आंख बन्द कर काटना पर्यायवरण को प्रदूषित करना है । जब पर्यावरण प्रदूषित होता है तो मानव-जीवन तरह-तरह की आपदाओं में फंस जाता है ।
हमारे अनेक धार्मिक तथा सामाजिक कृत्यों में वृक्षों, फूल-पत्तों तथा घास-फूस का अत्यधिक महत्त्व है । तुलसी पवित्र पौधा माना जाता है वह कई प्रकार के रोगों में औषधीय गुणों का काम करता है। बेल या बिल्व वृक्ष के पत्ते शिवलिंग पर चढ़ाए जाते त ।' अशोक वृक्ष भी पवित्र माना जाता १. सर्वाभावे बिल्वपत्रमर्पणीयं शिवाय च । बिल्वपत्रार्पणेनेव सर्वपूजा प्रसिध्यति ।।
(शिवपुराण)
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