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________________ पर्यावरण-संतुलन और सह अस्तित्व हीन-नीच नहीं समझते थे। उनकी दृष्टि में जो हीन-नीचे का सहायक होता है उस पर ईश्वर की कृपादृष्टि रहती है नीचां अदंर नीच जाति नीची छु अति नीच, नानक तिनकै संगि साथि वडिआ सिड किआ रीस। जित्थ नीच समालिअनि तित्थे नदरि तेरी बरुसीस ॥ अर्थात् नीची जातियों में जो नीचा है और उन नीचों में जो भी नीचा है, हे नानक ! मेरा उन्हीं से संग-साथ है । मुझे बड़े लोगों (जातियों) से कोई बराबरी नहीं करनी। जहां नीच को संभाला जाता है परमेश्व की . कृपादृष्टि भी वहीं होती है। महावीर ने अहिंस', दया पर जैसा बल दिया वैसा ही बल कबीर ने दिया। उनकी दया की भावना अनेक दोहों में मुखरित हुई है। उन्हें यह देखकर दुःख होता था कि हिन्दू और मुसलमान दोनों ने दया और रहम को अपने दिल से निकाल दिया है-उनको बिहिश्त कहां ते होई सांझे मुरगी मारे, यह है उनकी जीवदया की अवधारणा। वह तन को नहीं मन को प्रेम, भक्ति, करुणा, दया, समता के रंग में रंगने का उपदेश देते थे। सह-अस्तित्व की भावना से प्रेरित होकर कई जीव-रक्षक संस्थाएं कार्य कर रही हैं। दिल्ली में लाल जैन मंदिर में स्थित पक्षी-चिकित्सालय में पक्षियों की देखभाल की जाती है। 'द एनिमल फ्रैंड हास्पिटल-कमशैल्टर' नामक संस्था दिल्ली में भामाशाह रोड पर स्थित ऐसा ही कार्य कर रही हैं। श्रीमती मेनका गांधी तो ऐसा महसूस करती हैं कि यदि किसी पशु को कशाघात किया जाता है तो मानो उन्हीं पर कशाघात हो रहा है। यह संवेदना, संपीड़ा की अनुभूति कम व्यक्तियों को होती है किन्तु ऐसी संवेदना के विकास से ही पर्यावरण-संतुलन को बल मिलेगा। देश में जहां एक ओर शौकिया मांसाहार का प्रयोग देखा जाता है वहां विवेक सम्मत दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्तियों में शाकाहार का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। मांस, मछली, अण्डे में विटामिन या प्रोटीन नहीं, वरन् दालों, फलों आदि में इनकी मात्रा भी अत्यधिक है। सोयाबीन में प्रोटीन सर्वाधिक मिलता है। कश्मीर के प्रसिद्ध डाक्टर श्री गुलाम कादिर उलाकबन्द ने लोगों को सत्य परामर्श देते हुए कहा कि मांसाहार त्यागना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। अण्डा पेट में पत्थरी बनाता है । रोगी पशु का मांस खाने वाले में रोग पैदा करता है। भोजन संतुलित हो, सात्विक हो, सुपाच्य हो, पौष्टिक हो यही सबसे अच्छा है, स्वास्थ्यवर्धक है । अच्छा स्वास्थ्य खाने-पीने में संयम बरतने पर निर्भर है। विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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