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________________ पर्यावरण संतुलन और सह अस्तित्व SE । भारत के ऋषि एवं संतों का जीवन शाकाहारी थे । पर्यावरण शब्द से भले ही वे माहौल को साफ-सुथरा रखना उन्हें प्रिय था समझते । प्राचीन भारत में वृक्षों वनो की रक्षा का दायित्व शासक तथा जनता – सब जानते और समझते थे । हमारे ऋषि-मुनि नदियों के तट पर कुटी आश्रम बनाकर रहते थे । बड़े-बड़े ऋषि आश्रम वनों में होते थे । वहां वृक्षों को काटना, आखेट करना निषिद्ध था । ऋषि आज्ञा के बिना आखेट करना वर्जित था । कण्वाश्रम में दुष्यन्त को मुनि-शिष्य शिकार खेलने से रोकते हैं । वहां शिकार खेलना, पशु-पक्षी की हत्या करना आश्रम की मर्यादा के प्रतिकूल था । दुष्यन्त ने राजा होते हुए भी आश्रम की मर्यादा का पालन किया । बड़ा ही सात्विक था । वे अपरिचित रहे हों, लेकिन वे वनों, वृक्षों के महत्व को Jain Education International हम प्रति वर्ष २२ अप्रैल को "वसुंधरा दिवस" या "प्रकृतिमाता दिवस" मनाते है । ५ जून को "पर्यावरण दिवस" मनाया जाता है । जुलाई में शजरकारी वनमहोत्सव, अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में वन्यपशु संरक्षण सप्ताह मनाया जाता है, लेकिन हमारे अन्दर अपने माहौल को साफ स्वच्छ करने की वह चेतना पैदा नहीं हो पाती, जिसकी अपेक्षा है । जब तक हमारा पर्यावरण साफ-सुथरा न होगा तब तक हमारा जीवन सुखमय नहीं हो सकता । पर्यावरण पर विचार करते हुए हमें कई बातों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए १. जनसंख्या :- बढ़ती जनसंख्या ६ अरब से अधिक हो जायेगी और भारत की जनसंख्या एक अरब से ऊपर पहुंच गई है । २ प्रदूषणः - यह कई रूपों में अपनी विनाशलीला दर्शा रहा है । जल, वायु, ध्वनि, पृथ्वी सर्वत्र प्रदूषण का कुराज्य छाया है । ऐसा लगता है, जैसे सुन्दर चेहरे पर चेचक के दाग निकल आए हों। हमारे यहां महानगरों (मेगा सिटिज) के अतिरिक्त कानपुर, पाली, बड़ौदा, धनबाद, कोरबा सहित १५ नगरों की विकट स्थिति बनी हुई है । बम्बई का चेम्बूर क्षेत्र प्रदूषण का पर्याय बन गया है । ३. संसाधनों का अपव्यय - वन वृक्ष हो या कोयला, लोहा, तेल गैस हो, सभी का दोहन कर हम असंतुलन पैदा कर रहे हैं। इसका मूल्य मानवजाति को विनाश विपदाओं के रूप में चुकाना पड़ेगा और पड़ा है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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