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अध्यात्म के परिपार्श्व में
कविकलाधर कालीदास ने आम्रमंजरी तथा शिरीष के फूल का खूब वर्णन किया है । 'कुमारसम्भव' और 'रघुवंश' में प्रकृति के इन रूपों की मोहक, जीवन्त अभिव्यक्ति प्राप्त होती है। मुनि-आश्रमों में पशु-पक्षियों की देखभाल तो होती ही थी, वृक्षों-लताओं को भी जलादि से सींचकर उन्हें हरा-भरा रखा जाता था। कहते हैं--कश्मीर के 'नसीम बाग' (चिनारवाटिका) को दूध से सींचा जाता था। कण्व आश्रम में शकुन्तला का आंचल हिरण-शावक पकड़ लेता है, लताओं-वृक्षों से लिपटकर शकुन्तला रोती है। वे मानो उनकी सहेलियां हों ! यह है प्रकृति का मनुष्य से सम्बन्ध । आचारांग (११३, शस्त्रपरिज्ञा) में मनुष्य और प्रकृति को समान-गुणसम्पन्न माना है । दोनों जन्मते, बढ़ते हैं, दोनों चैतन्ययुक्त हैं, दोनों छिन्न होने पर म्लान हो जाते हैं, दोनों आहार लेते हैं, दोनों अनित्य, अशाश्वत हैं, दोनों नाना अवस्थाओं को प्राप्त होते हैं, दोनों उपचित-अपचित हैं। इसलिए वनस्पतिकायिक जीव को, प्रकृति को न स्वयं नष्ट करें, न दूसरों से नष्ट करावें, न नष्ट करने वालों का अनुमोदन करें। (आचारांग, शस्त्रपरिज्ञा, ११६)
जैन धर्म अहिंसावादी है अतः इसमें इकोलॉजी या पर्यावरण पर विशेष बल दिया गया है । आज हमारा पर्यावरण कई रूपों में असंतुलित एवं प्रदूषित हो रहा है । फ्रेडरिक स्मेटेसेक ने हाल ही में यह रहस्य उद्घाटित किया है कि हिमालय का तापमान आधा डिग्री सेंटिग्रेड बढ़ने के कारण हिमालय की तितलियां वहां से भागना शुरू हो गई हैं। (दैनिक हिन्दुस्तान टाइम्स, १५ अक्टूबर, १९८०)
प्रदूषण से बचने के लिए हम सभी को विभिन्न स्तरों पर सक्रिय, सावधान रहना चाहिए । प्रदूषण विश्व मानवता के विरुद्ध एक हमला है, ऐसा नार्वे की भूतपूर्व प्रधानमंत्री ग्रो हार्लेम ने इन्दिरा गांधी शान्ति पुरस्कर लेते हुए सितम्बर १९९० को अपने भाषण में कहा था । तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रतापसिंह ने उस अवसर पर कहा था-'पर्यावरण पर आए विश्व-व्यापी संकट से निपटने के लिए विश्व-स्तर पर प्रयासों की जरूरत है. ऐसा कोई भी प्रयास तभी सफल होगा जब औद्योगिक रूप से विकसित और विकासशील राष्ट्र मिलकर प्रभावशाली कदम उठाएं । हम सबका अस्तित्व खतरे में है। अमीर और गरीब सभी को मिलकर विश्व पर्यावरण को बचाने का प्रयास करना चाहिए।'
विश्व पर्यावरण को बचाने के लिए हमें जैन धर्म की अहिंसा तथा अपरिग्रह की दृष्टि को अपनाना होगा। हमें वन्य पशुओं की हत्या से हाथ रोकना होगा और वृक्षों, वनों की अन्धाधुन्ध कटाई बन्द करनी होगी। हमारे हृदय में वृक्षों-वन्य प्राणियों के प्रति प्रेम-करुणा का, वत्सलता का भाव पैदा होना चाहिए । अपने को सम्पन्न बनाने के लिए हम प्रकृति को निर्धन बना
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