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अध्यात्म के परिपार्श्व में
स्टाकहोम कान्फ्रेंस में सन् १९७२ में पर्यावरण की ओर संसार के देशों का ध्यान आकृष्ट किया गया। भारत में पर्यावरण-विषयक कानून १९७४ में पारित हुआ, जिसे जल-शुद्धि का कानून कहा गया (जल-प्रदूषण की रोकथाम का कानून-प्रीवेंशन एण्ड कन्ट्रोल ऑन पोल्यूशन एक्ट)। दूसरा कानून वायु-शुद्धि को लेकर १९८१ में पास किया गया और पर्यावरणविषयक चेतना को जनमानस में जगाने का काम सर्वप्रथम श्रीमती इन्दिरा गांधी ने किया। १९८६ में पर्यावरण सम्बन्धी सभी मुद्दों को ध्यान में रखकर 'एनवायरन्मेंट प्रोटेक्शन एक्ट' बनाया गया । अब तो भारत में पर्यावरण एवं वन्यप्राणी रक्षा नाम से एक स्वतंत्र मंत्रालय स्थापित हो गया है ।
जब हम जैन तीर्थंकरों के चिह्नों को देखते हैं तो वहां भी हमें पर्यावरण की अनुभूति होती है । २४ तीर्थंकरों में १७ तीर्थंकरों के चिह्न पशुपक्षी से जुड़े हुए हैं। आदि तीर्थंकर ऋषभदेव का चिन्ह बैल है । यह भारतीय कृषि संस्कृति का आधार-स्तम्भ है। यहां बैल से जुड़े घास के मैदान, साफ-स्वच्छ जल से भरे नदी-नाले, तालाब, हरी-भरी खेती सभी साकार हो उठते हैं । गज (अजितनाथ), अश्व (संभवनाथ), वानर (अभिनन्दननाथ), चकवा (सुमितनाथ), मकर (पुष्पनाथ), गैंडा (श्रेयांसप्रभु), महिष (वासुपूज्य), शूकर (विमलनाथ), सेही (अनन्तनाथ), हरिण (शांतिनाथ), छाग (कुंथुनाथ), कच्छप (मुनि सुव्रत), सर्प (पार्श्वनाथ), सिंह (महावीर) । ये सभी चिह्न पशु-पक्षी से सम्बधित हैं। इनके अतिरिक्त लाल कमल (पद्मनाथ), तगर कुसुम (अरहनाथ), नीलोत्पल (नमिनाथ), शंख (नेमिनाथ) प्रकृति विषयक हैं, जहां सौन्दर्य है, शुद्ध वायु है, सुगन्ध है । शंख, कच्छप, मकर जल की शुद्धता की ओर संकेत करते हैं। चन्द्रमा (चन्द्रप्रम) भी शीतलता, स्वच्छता, प्रकाश का प्रतीक है। ये सभी चिह्न प्रतीकात्मक हैं और पर्यावरण की शुद्धता का भान कराते हैं । पर्यावरण की अनुभूति जैन तीर्थंकरों को हजारों वर्ष पूर्व थी, इसमें कोई सन्देह नहीं । यह पर्यावरण की अनुभूति ही थी, जिससे वन्यपशु. वृक्ष, वन सभी की सुरक्षा का ध्यान जैनधर्म में रखा गया है।
__ शाकाहार के पीछे पर्यावरण की चेतना छिपी है । मांसाहार के लिए पशु-पक्षी का हनन करना पड़ता है और ये पशु-पक्षी हमारे वातावरण को शुद्ध, पवित्र रखते हैं । कुछ जल को शुद्ध रखते हैं, कुछ वृक्षों-वनों की रक्षा करने का सद्ज्ञान हमें देते हैं। वन्यपक्षी हरे-भरे मैदानों, वनों में रहते हैं
और वे तभी रहेंगे जब वन होंगे, वृक्ष होंगे । वनों से, वृक्षों से वायु शुद्ध मिलती है, वर्षा होती है, भू-स्खलन नही होता । पृथ्वी की उर्वरता बनी रहती है। दया की भावना हमें हिंसा से रोकती है और हमारे अन्दर आत्मीयता का भाव पैदा करती है । जब हम शाकाहार की बात करते हैं
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