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________________ ३४ अध्यात्म के परिपार्श्व में आतंकवाद है, हिंसा उपद्रव है, सांप्रदायिकता है, सबको समता की नदी बहा कर ले जा सकती है, उन्हें दूर फेंक सकती है | भगवान् महावीर तो जीवन-भर समतायुक्त आचरण करते रहे, समता की साकार प्रतिमा बने रहे । भला अपना जीवन किसे प्रिय नहीं, सुख कौन नहीं चाहता ? हमें फिर क्या अधिकार है दूसरे के प्राण लेने का ? अब तो अनेक देश फांसी की, मृत्यु दण्ड की सजा को अमानवीय कह कर उसका निषेध कर रहे हैं । दया, ममता, सहानुभूति मानवीय गुण हैं, इनमें हमारे जीवन मूल्यों की सुगन्ध भरी पड़ी है | दोस्तोवस्की ने कहा है कि दयाभाव सर्वोत्तम गुण है, मानव-जीवन का एकमात्र सिद्धांत, नियम है । हम इस एक नियम को भी अपने जीवन में नहीं उतार सके ! आज संसार के सभी देश आतंकवाद, हिंसावाद के कैंसर से पीड़ित हैं । संसार विनाश की ओर उन्मुख है, आंखों पर पट्टी बांधे वह सरपट दौड़ रहा है । मालूम नहीं उसका क्या अंजाम होगा ? हम विश्वशांति की चाह करते हैं; लेकिन चाह करने से कुछ नहीं होता, कुछ अमल करना होगा, अपने आपको पहचानना होगा । महावीर ने इसी का उपदेश दिया । ' महामानव महावीर' में डॉ० गुणवंत शाह ने ठीक लिखा है कि अहिंसा परम धर्म बन जाए, ऐसी अनुकूलता बढ़ते हुए औद्योगीकरण, प्रदूषण की समस्याओं, संतुलन की जरूरतों, ऊर्जा के संकट, बढ़ते हुए तनाव और सर्वनाश की आशंका के कारण बन रही है । महावीर की अहिंसा का ऐसा संदर्भ स्वीकार न करें तो दोष हमारा है । कबीर ने अपने शाकाहारदर्शन में जिस बात की ओर संकेत दिया है, वह अहिंसा का ही तो उपदेश है । उनकी अहिंसा महावीर की अहिंसा है, भले ही उन्होंने जैनधर्म की शिक्षा न पायी हो; लेकिन इसमें संदेह नहीं कि कबीर का सम्पर्क जैन साधुओं से रहा है और उनकी दिनचर्या से, महाव्रतों से, आचार-विचार से वे जरूर परिचित रहे हैं । स्वभाव से कबीर भी महावीर के समान एक-स्थान-सेदूसरे स्थान भ्रमण करते रहते थे । यायावर वृत्ति थी उनकी; अतः उन्होंने जो काम, क्रोध, लोभ, मोह की निन्दा की है, इन्द्रियनिग्रह तथा अपरिग्रह का, अहिंसा का उपदेश दिया है, वह महावीर के विचार-दर्शन का ही प्रतिबिम्ब है | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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