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अध्यात्म के परिपार्श्व में
युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ ने कहा है-'मन पर मैल तब जमता है जब हम अनित्य को नित्य मान कर चलते हैं, संयोग को शाश्वत और विजातीय को सजातीय मान कर चलते हैं । हम इस बात को सिद्धांत से और व्यवहार से भी जानते हैं कि पदार्थ अनित्य है, संयोग अनित्य हैं । जो पदार्थ प्राप्त है वह अवश्य नष्ट होगा।' यह अनित्यता का बोध मनुष्य को नित्यता की ओर उन्मुख करता है । कबीर भी उसी अनश्वर परमात्मा की शरण में जाने का आह्वान करते हैं और सदैव शुद्धाचरण पर बल देते हैं, आत्मीयता का, नम्रता का, निष्परिग्रह का सदुपदेश देते हैं।
कबीर ने उस हिन्दू की, उस मुसलमान की खुल कर निन्दा की है, जो सात्त्विक आचरण नहीं करता, जिसमें अहंकार है, पाखण्ड है, निर्दयता है । वे वासना के परिष्कार पर बल देते हैं, इन्द्रिय-नि ग्रह का मार्ग दर्शाते हैं । हिन्दू व्रत रखता है, अन्न का त्याग करता है; लेकिन मन पर, रसना पर नियंत्रण वह नहीं रख पाता और एकादशी का व्रत फलाहार (दूध, सिंघाड़ा) से करता है । मुसलमान भी रोजा रखते हैं, लेकिन रोजा इफ्तार करते समय मुर्गे का मांस खाते हैं
रोजा तुरुक नमाज गुजारे बिसमिल बांग पुकार।
उनको भिस्त कहां ते होइहैं सांझ मुरगी मारै ।। कबीर सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्दृष्टि की, निर्मल दृष्टि की बात करते हैं । मांसाहार की निन्दा कबीर बार-बार करते हैं। वे नहीं चाहते कि कोई किसी जीव की हत्या कर उसका मांस खाये । एक स्थान पर वे कहते हैं--
तुरकी धरम बहुत हम खोजो, बहु बजगार कर ए बोधा । गाफिल गरब करै अधिकारी, स्वारथ अरथि बधै ए गाई ।।
व्यक्ति एक ओर धर्म की बात करता है, दूसरी ओर मिथ्याचरण करता है । निज स्वार्थार्थ, स्वादार्थ गौ की हत्या करता है, गौ की हत्या करके बकरी का खारा दूध पीने वाला मूर्ख, मंदबुद्धि, अज्ञानी नहीं तो और क्या है ? अहिंसा महाव्रत का पालन साधु-वर्ग करता है, अहिंसाणुव्रत का पालन श्रावकगण करते हैं। कबीर नहीं चाहते कि छोटे-से-छोटे जीव की भी कोई हत्या करे। पूजा-सामग्री में फूल चढ़ाते समय लोग जीव-हत्या करते हैं, मन्दिर के बनवाने में भी असंख्य जीवों की हत्या होती है । कबीर की अहिंसामय दृष्टि देखते ही बनती है
अरु भूले षट्दरसन भाई, पाखंड भेस रहे लपटाई । जैन बोध अरु साकत से ना, चारबाक चतुरंग बिहूना । जैन जीव की सुधि न जाने, पाती तोरि देहुरै अनैं । दोना मवरा चंपक फला, तामै जीव बसैं कर तूला ।। अरु प्रिथमों का रोम उपार, देखत जीव कोटि संघारै।
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