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अध्यात्म के परिपाक में
महावीर अहिंसा-धर्म के प्रवर्तक हैं और कबीर ने भी इसी अहिंसा धर्म को अपने जीवन में भली-भांति उतारा था। वह एक मुस्लिम परिवार में पालित-पोषित थे परन्तु जीव-हत्या को, हिंसा को उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने काम, क्रोध, तृष्णा मोह आदि विकारों को नष्ट करने या इन्द्रिय-निग्रह करने की जो बात कही उसके पीछे भी उनकी अहिंसा भावना छिपी हुई है । आज के सन्दर्भ में महावीर और कबीर की अहिंसा भावना मानव जाति का कल्याण करने वाली है, इसमें कोई संदेह नहीं । क्योंकि सकल संसार आज हिंसा की लपटों में घिरा है। महावीर एवं कबीर जैसे संतों की अहिंसा उन लपटों को पल भर में शान्त कर सकती है। महावीर ने तो हमेशा यही उपदेश दिया है कि किसी जीव का हनन नहीं करना चाहिए । यह सब तीथंकरों का भी अमृतोपदेश है
अतीतै विभिश्चापि वर्तमानैः समैजिनः । सर्वे जीवा न हन्तव्या, एष धर्मो निरूपितः ।।
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