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________________ अहिंसा की गंगा : भारत की अस्मिता करना । महावीर ने अहिंसा की स्थूल नहीं, सूक्ष्म व्याख्या की है । प्राणिमात्र का हनन न करना ही उनकी दृष्टि में अहिंसा नहीं, वरन् किसी को हाथ, पैर, जबान, आंख से कष्ट न पहुंचाना अहिंसा है । मन में किसी के प्रति वैर-भाव, ईर्ष्या, क्रोध का भाव न आने देना अहिंसा है । इस प्रकार तीर्थकर महावीर की अहिंसा की भूमि अत्यधिक विशाल तथा विशद है, विस्तृत है । आज हमें उसी भूमि का संस्पर्श कर अपने जीवन को शुद्ध बनाना है, मोक्षोन्मुखी करना है। हिंसात्मक वत्ति के विस्तार ने जन-मानस को भयाकुल बना रखा है। किराए के हत्यारों द्वारा सुनियोजित रूप से लोगों की हत्याएं करायी जाती हैं । जुलूस पर पत्थर बरसाएं जाते हैं, लोगों को हिंसा करने पर उकसाया जाता है। धर्म का, मंदिर-मस्जिद का नाम लेकर लोगों को लड़ाया जाता है । राजनीति में धर्म को दाखिल करना खतरनाक होता है, इसके दुष्परिणाम हम देख चुके हैं। यदि अब भी पहले की गयी गलती से सबक नहीं सीख लें तो यह बुद्धिमानी नहीं होगी। धर्म का राजनीति से क्या लेनादेना? हमें राजनीति को धर्म सम्मत न बनाकर नीति सम्मत, नैतिकतापूर्ण बनाना चाहिए। हमारा जीवन नैतिकता की सुगंध से खाली है इसलिए उसमें प्रेम, स्नेह, करुणा, सौहार्द, सहिष्णुता, समानता की खुशबू नहीं आती। आज आदमी की हत्या करना जितना सरल है शायद उतना सरल और कोई काम नहीं । धन-लोलुप हत्यारे जब चाहें, और जिसे चाहें मार सकते हैं, दिन दहाड़े मारते भी हैं । राजनीति से प्रेरित हत्याएं हमारे समाज तथा देश के भविष्य को अंधकार की ओर ले जाने वाली हैं, इस समस्या पर अभी तक सरकार ने, प्रशासन ने, विधिवेत्ताओं तथा समाजसुधारकों ने गम्भीरता से नहीं सोचा । सोचना पड़ेगा, गहरे जाकर चिंतन करना पड़ेगा । अहिंसा का वर्चस्व खत्म हो गया तो समझ लीजिए गंगा भारत से लुप्त हो जायेगी। हमें अपने देश की एकता, अखण्डता तथा स्वतंत्रता को बनाए रखना होगा जिस कारण आज हिंसा का लावा उमड़ रहा है, उसे हर स्तर पर रोकना पड़ेगा, सस्ती से कदम उठाने पड़ेंगे । समाज में रहने से कलह, संघर्ष का होना स्वाभाविक है लेकिन आदमी का स्वभाव शान्ति और प्रेम का होता है, हत्या करने का नहीं होता। यदि ईर्ष्या-द्वेष के कारण कुछ थोड़ा-बहुत मन-मुटाव भी हो जाए तो कोई बात नहीं, इतना अधिक न हो कि खूनखराबे की नौबत आ जाए बस इस हद तक हो कि हमारी आगे भी बोलचाल बनी रहे-- दुश्मनी जमकर करो मगर इतनी गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हों, मिलकर शर्मिन्दा न हो। हमारा पर्यावरण प्रदूषित है । पृथ्वी, जल, हवा, वनस्पति सभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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