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________________ अहिंसा की गंगा : भारत की अस्मिता भारतीय संस्कृति में गंगा का जो महत्त्व है वही महत्त्व हमारे जीवन में अहिंसा का है। गंगा मोक्षदायिनी है, पीयूषवर्षिणी है, सकल मल-कलुष हारिणी है । अहिंसा भी मोक्षदायिनी है, जगन्माता है, सर्व प्राणियों को सुखशांति प्रदान करने वाली है। सूत्रकृतांग' में अहिंसा को जगत्-माता कहा गया है । 'योगशास्त्र' में कामधेनु के रूप में व्याख्यायित किया गया है । अहिंसा जगत-माता है, आनन्द का मार्ग है. उत्तम गति है, शाश्वत लक्ष्मी है अहिंसव जगन्माताऽहिंसैवानन्दपद्धतिः । अहिंसव गतिः साध्वी, श्री अहिंसैव शाश्वती ।। प्रश्न यह है कि जब अहिंसा में ऐसी अद्भुत शक्ति है, ऊर्जा है, गुणसम्पन्नता है तो हमारे जीवन की खेती क्यों सूखती जा रही है ? जहां देखो हिंसा का बोल बाला है । राजीव गांधी की नृशंस हत्या इसका ज्वलंत प्रमाण है। इसके साथ आप निर्वाचन के दिनों पर ध्यान दीजिए । कितने ही विधानसभा के, संसद के उम्मीदवारों को निशाना बनाकर उनकी हत्याएं की गयीं। दुकानें जलायी गयीं, मकानों को जलाकर राख कर डाला गया। जीवित व्यक्तियों को जलाकर मार डाला गया । जिधर देखो उधर ही भय, आतंक का वातावरण व्याप्त है । समझ में नहीं आता देश किधर जा रहा है ? समाज में जीवन-मूल्य क्यों स्खलित हो रहे हैं ? क्यों आतंकवाद का दमघोटू पंजा सबकी ओर बढ़ता जा रहा है ? भारत की यह पहचान नहीं। भारत की अस्मिता अहिंसा में निहित है, अपरिग्रह की भावना में परिव्याप्त है । धर्म की श्रेष्ठता इसमें है कि हमारी वाणी से, विचार और कर्म से किसी को कष्ट न हो । लेकिन हम श्रेष्ठ धर्म का स्वरूप भूल बैठे हैं। स्वार्थ, मोह, अहंकार, अर्थसंग्रह में इतने अंधे हो गये हैं कि सद्मार्ग दिखायी ही नहीं पड़ता। विवेकशील तथा ज्ञानी होने का सार यही है कि हम किसी प्राणी की हत्या न करें, किसी का अहित न करें, न अहित करने का भाव मन में रखें। कुछ वर्ष पूर्व रूस के राष्ट्रपति गोर्बाच्येव भारत आये थे। उस समय दस सूत्री "दिल्ली घोषण पत्र" तैयार किया गया, जिसमें दो सूत्र मुख्यतः अहिंसा पर केन्द्रित थे । वे थे ---(१) अहिंसा को सामाजिक जीवन का आधार बनाना (२) अहिंसक विश्व का निर्माण करना । सिद्धांतों का बखान करना, उनका घोष-पत्र तैयार करना बुरा नहीं, अच्छा है और आसान भी है । कठिन है उनको जीवन में उतारना, उनको व्यावहारिक रूप प्रदान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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