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अहिंसा की भावभूमि
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रहती है । यहां 'अपने' के स्थान पर 'दूसरे' को तरजीह दी जाती है; अतः स्वार्थ का, विषय वासना या तृष्णा का, लोभ या मोह का कोई स्थान यहां नहीं रहता। फिर अहिंसा मोक्ष का द्वार बन जाती है। आत्मा का संस्कारपरिष्कार इसी के द्वारा संभव है । इस तरह व्यक्ति और समाज को, इहलोक और परलोक को सुख-आनन्दमय बनाने की शक्ति अहिंसा में विद्यमान है।
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