________________
अहिंसा की भावभूमि
जब हम अहिंसा की बात करते हैं तब यह भूल जाते हैं कि इस शब्द का अस्तित्व हिंसा के कारण है । हिंसा न होती तो 'अहिंसा' की व्युत्पत्ति सम्भव नहीं थी । देखने में तो यह आया कि सृष्टि का यह सारा बखेड़ा हिंसा का मूल है । मनु द्वारा सृष्टि की पुनर्रचना से पूर्वं देवजाति का संहार हिंसा पर आधृत था । कहते हैं- आदिकाल में अनेक बार देव-दानवों के युद्ध होते रहे, पुराणादि इसके साक्ष्य हैं । यों देव-दानव-परम्परा तो अपने परिवर्तित रूप में आज भी विद्यमान है—उसके रूप में, मात्रा में, कार्य-कारण में, विधिविधानों में काफी अन्तर पड़ गया है। कुरान के पवित्र पृष्ठों से विदित है कि खुदा ने आदम का पुतला बनाकर सभी फरिश्तों से उसके सामने सिजदा कराया। सभी ने खुदा के हुक्म की तामील की — एकदम सिजदे में झुके । मगर इब्लीस ( शैतान) ने सिजदा नहीं किया, और तर्कसंगत कारण प्रस्तुत किया कि यह आदम मिट्टी से बना है, खाक का पुतला है जबकि मैं नार (भग) से बना हूं । खुदा के हुक्म की तामील न करने की सजा शैतान को दी गयी कि खुदा ने उसे अपने दरबार से निकाल दिया; लेकिन उसी क्षण उसने प्रण किया कि जिस आदम के कारण में इतना अपमानित और तिरस्कृत हुआ, उसे और उसकी भावी पीढ़ियों को कभी चैन से नहीं बैठने दूंगा, उसे हमेशा सन्मार्ग से विचलित करता रहूंगा - पापों और गुनाहों में फंसाता रहूंगा । इब्लीस ने अपने परम शक्तिमान अस्त्र का सबसे पहले उसी आदम पर प्रयोग किया और जन्नत (स्वर्ग) में अल्लाह द्वारा निषिद्ध फल उसे खिलाया । फिर क्या था, आदम मला अल्लाह के प्रकोप से कैसे बच सकता था, उसने तुरन्त उसे स्वर्ग से पृथ्वी पर पटक दिया । शैतान के मन की मुराद पूरी हुई; किन्तु अभी तक वह चैन से नहीं बैठा । न आदम अभी तक मरा, न शैतान । दोनों अपने अपने रास्ते अग्रसर हैं । कह नहीं सकते - बाजी किसके हाथ में रहेगी। इतनी लम्बी-चौड़ी भूमिका से यह बात स्पष्ट होती है कि हिंसा और अहिंसा की लड़ाई जारी है और जारी रहेगी; क्योंकि लक्षण और परम्परागत अनुभव यही कहते हैं ।
यदि 'जीवो जीवस्य भोजनम्' के सिद्धांत पर विचार करें, या ऐसे दार्शनिकों-विचारकों के मत पर दृष्टिपात करें, जो युद्ध की संभावना को संसार के लिए अनिवार्य मानते हैं, तो हमें हिंसा का पलड़ा ही भारी दिखायी देगा; परन्तु स्वयं जीवन के या आदम के स्वरूप पर दृष्टिपात करें तो अहिंसा का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org