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________________ अपरिग्रह : वर्तमान संदर्भ में १७ राजकुमार थे, वैशाली राज्य का रास्ता अपनाया । हमारे युग में गांधीजी एक सम्पन्न परिवार से आये थे, बैरिस्टर थे परन्तु जब स्वतंत्रता के पथिक बने तो अपरिग्रहव्रत धारण कर महावीर की परम्परा का, उनके आदर्शों का अनुकरण किया । नेहरूजी ने समाजवादी शासन व्यवस्था या समाजवादी समाज-व्यवस्था को अपना कर महावीर की ही अपरिग्रहवादी विचारधारा को आगे बढ़ाया। आज हम महावीर के इस अपरिग्रहवाद को जीवन में उतार कर राष्ट्रीय चरित्र का विकास कर सकते हैं । हमारे देश में साधारण मनुष्य से लेकर नेता लोगों तक में राष्ट्रीय चरित्र का अभाव पाया जाता है और यह एक खटकने वाली बात है | देशोत्थान के लिए हमें व्यक्तिगत स्वार्थी को छोड़ना है, शोषण की कुवृत्ति को त्यागना होगा । 'इच्छापरिमाणव्रत', जिसका उपदेश महावीर ने दिया था, वह हमारे अन्दर कहां है ? क्या हमारे समाज में दहेज की कुप्रथा परिग्रह का उदाहरण नहीं ? क्या इसकी भेंट अनेक नव विवाहिता युवतियां नहीं चढ़ाई जातीं, उन्हें मिट्टी का तेल छिड़कर नहीं जलाया जाता ? हमें पुनः महावीर के उपदेशों को पकड़ना होगा, उनकी शरण में जाना होगा, उन्हें जीवन में उतारना होगा । प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने एक बार कहा था - 'लगभग सभी लड़ाइयां जमीन, सोना, अन्न अथवा खनिज हथियाने के लिए लड़ी गईं । आज दुनिया को मालूम पड़ रहा है कि शांति के साथ-साथ मानसिक शान्ति तभी आ सकती है जब हम स्वार्थपरता से छूटकारा पायें । आत्मिक विकास के बिना हम आर्थिक विकास के झगड़ों को नहीं सुलझा सकते । आधुनिकता और विज्ञान का मतलब यह नहीं होता कि हम प्राचीन मूल्यों को छोड़ दें, बल्कि हमारा प्रयत्न तो यह होना चाहिए कि विज्ञान के साथ हम उनका मेल बिठाएं । अहिंसा और अपरिग्रह से ही सभ्यता बचाई जा सकती है ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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