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अध्यात्म के परिपावं में
रखा और आदेश दिया-सद्गृहस्थ को चोरी का माल नहीं खरीदना चाहिए, चोरी के माल के लोभ से किसी की सहायता नहीं करनी चाहिए, चोर की भी सहायता नहीं करनी चाहिए, नाप-तोल में बेईमानी न करें, राज्य द्वारा निषिद्व (जैसे शराब, तस्करी आदि) व्यवसाय न करें और न ही असली में नकली वस्तु मिलाकर उसे कम मूल्य पर बेचकर पाप के भागी बनें । महावीर ने स्पष्ट कहा-असंविभागी न हु तस्स मोखो अर्थात् जो असंविभागशील है, अपनी अजित वस्तुओं को दूसरों में संविभाजित नहीं करता, उसे मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता । अतः अपरिग्रह ही मोक्ष-मार्ग है ।
दक्षिण के महान् संत कवि तिरुवल्लुवर ने एक स्थान पर कहा है'धोखा देकर, दगाबाजी से धन जमा करना बस ऐसा है जैसा कि मिट्टी के कच्चे घड़े में पानी भर कर रखना । जो धन निष्कलंक रूप से प्राप्त किया जाता है उससे धर्म और आनन्द का स्रोत बह निकलता है।" महावीर ने धन कमाने को बुरा नहीं कहा । धनाजित किये बिना हमारा काम नहीं चलेगा, समाज का उत्थान नहीं होगा, देश की प्रगति नहीं होगी, लेकिन लूट-खसोट करना, खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट करना निन्दनीय है, समाज, देश और मानवता के हित में नहीं है। महावीर का धर्म मानव-धर्म है इसलिए उन सब वस्तुओं के परिग्रह का यहां निषेध है, जिनसे मानवजाति का अहित हो। मनुष्य के लिए, गृहस्थी के लिए उन्होंने 'परिग्रह परिमाण' की घोषणा की, अर्थात् सीमित मात्रा में आवश्यकतानुसार वस्तुओं का संग्रह करना मनुष्य और समाज के लिए हितकर है परन्तु लोभवृत्ति की उन्होंने निन्दा की, क्योंकि लोभ पाप का मूल है, यह अहिंसा की जननी है, अस्तेय की मां है । महावीर ने कहा
वियाणिया दुक्खविवड्ढणं धणं, ममत्तबन्धं च महद्भयावहं । सुहावहं धम्मधुरं अणुत्तरं, धारेज्जे निव्वाणगुणावहं महं। .
अर्थात् धन को दुख बढ़ाने वाला, ममत्व बन्धन का कारण और महाभयावह जानकर उस सुखावह, अनुपम और महान् धर्मधुरा को धारण करो. जो निर्वाण-गुणों को वहन कहने वाली है।
कबीर के शब्दों में महावीर के अपरिग्रह की यह परिभाषा हो सकती है। कबीर भगवान से प्रार्थना-याचना करते हैं
साई इतना बीजिए जामे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा ना रहं साधु न भूखा जाया। क्या हम कभी सोचते हैं कि हमारे पड़ोसी कितने सुखी-दुःखी हैं ? क्या हम उनके अभावग्रस्त जीवन में सहारा बन सकते हैं ? क्या हमारा धनसंग्रह उनकी दरिद्रता का कारण नहीं ? मनुष्य धनार्जन से महान नहीं बनता, त्याग व बलिदान से महान् बनता है । हमें हमारे देशवासियों को, धनार्जन
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