SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपरिग्रह : वर्तमान संदर्भ में भगवान् महावीर ने मानवता के उद्धार के लिए पांच सिद्धांतों या महाव्रतों का प्रतिपादन किया-(१) अहिंसा (२) सत्य (३) अस्तेय (४) ब्रह्मचर्य (५) अपरिग्रह । यह माना कि उनके युग में और हमारे युग में लगभग ढाई हजार वर्षों का एक बहुत लम्बा अन्तराल है, परन्तु यदि हम आज देश की सामाजिक या आर्थिक परिस्थितियों पर दृष्टिपात करें, राष्ट्रीय समस्याओं का पर्यवेक्षण करें और विश्व की विनाशकगार पर खड़ी स्थिति का अवलोकन करें तो हम अपने आपको, समाज, देश और विश्व को महावीर-युगीन परिस्थितियों में पाते हैं। आज भी वैसी ही हिंसा है, घृणाद्वेष है, जातीय भेदभाव है, आर्थिक विषमता है, वर्ग-संघर्ष है, कामुकता और वासना है, अशांति और तनाव है। मनुष्य अवश्य चांद पर कदम रख चुका है, परन्तु उसे धरती पर चलना नहीं आता। उसकी धर्मपरायणता स्वार्थ में भस्म हो गई है । उसकी मानवता 'स्व' के घेरे में बंधी रहती है। उनके चरित्र की आभा धूमिल पड़ गई है । उसके कर्मों से दूसरों का हित नहीं, अहित होता है । वह समाज में रहकर समाज से दूर है। उसके हृदय और बुद्धि में कोई तालमेल नहीं, उसके कहने और करने में कोई सामंजस्य नहीं, वह बुरी तरह विषमता के जाल में फंसता जा रहा है, इसीलिए दुःखी है, अशांत है। ___ इस संसार में न जाने कितने प्राणी हैं। हमारे चारों ओर अनेक मनुष्य हैं, पशु-पक्षी हैं। उनके प्रति भी हमारे कुछ कर्तव्य हैं. उन्हें साथ लेकर यदि हम चलें तो कितना अच्छा हों, उन्हें साथ लेकर यदि हम काम करें, खायें-पीये, हंसे-खेलें तो यह धरती न जाने क्या बन जाए ! बस हम मानव बन जायें तो संसार को बदल कर रख दें। आज जब चारों ओर हिंसात्मक घटनाएं देखते हैं तो यकीन नहीं होता कि हम महावीर-गौतम के देश में रहते हैं । क्या यह गांधी का देश है ? महावीर के सिद्धांतों में अपरिग्रह का स्थान पांचवां है परन्तु इसे जीवन मनुष्य समाज के विकास और उन्नयन का हम प्रथम सोपान मानेंगे। इसी के द्वारा हम दूसरे सोपानों पर जमा-जमा कर पैर रखते हुए अहिंसा के उच्च शिखर पर पहुंच सकते हैं। अतः अहिंसा की समुपलब्धि के लिए आवश्यक है कि अपरिग्रह व्रत को धारण करें। महावीर ने अर्थजन्य विषमता को, जातीय या वर्गभेद को मिटाने के लिए अपरिग्रह का सूत्र दिया, अचौर्यव्रत की विचारधारा दी। उन्होंने लोभ-वृत्ति को रोकने के लिए अस्तेय व्रत का विधान सामने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy