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________________ वाचार्य महाप्रज्ञ की शिक्षा-विषयक दृष्टि १९५ कविवर दरिया ने सद्गुरु को संसार सागर, का संतरण करने वाला कर्णधार माना है । सुकृत पिरेमहि हितु करहु, सत बोहित पतवार । खेवट सतगुरु ज्ञान है, उतरि जाव भी पार ॥ आचार्य तुलसी ऐसे ही केवट हैं जो जनगण को संसार से मुक्ति प्राप्त कराने के लिए जीवन- बोहित को खे रहे हैं । ऐसा सदगुरु जिसे प्राप्त हो जाए तो उसे और क्या चाहिए ! युवाचार्य जो हैं वह इन्हीं सद्गुरू का प्रसाद है । नत्थू से 'नथमल' और फिर 'युवाचार्य' व 'महाप्रज्ञ' बनने वाला भी कोई साधारण शिष्य नहीं, वह ज्ञान का भूखा और परम विनम्र तथा गुरुसमर्पित शिष्य रहा है । सच्चा साधक है । गीता में जो उपदेश अर्जुन को कृष्ण भगवान् ने दिया सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥ गीता १८,६६ उसे साकारित करने वाले हैं युवाचार्य - अर्थात् वे पूर्णतः गुरु को समर्पित हैं । युवाचार्य का चिंतन बहुआयामी है । वह जिस विषय को छूते हैं उसका विवेचन सूक्ष्मता से तथा विभिन्न पहलुओं को सामने रखकर करते हैं और एक हल, एक समाधान बिन्दु पर पहुंचते हैं । उन्होंने अपनी दो पुस्तकों में 'जीवन-विज्ञान' का एक मौलिक चिन्तन प्रस्तुत किया जो अत्यन्त प्रासंगिक तथा व्यावहारिक है । इन पुस्तकों में उन्होंने वर्तमान शिक्षा को नया रूप देने के लिए कुछ विचार रखे हैं । ये विचार धर्म की परिधि परम्परा से सर्वथा मुक्त हैं । वे एक धर्म-आस्था को समर्पित हैं अवश्य, लेकिन उनके दिमाग की खिड़कियां हमेशा खुली रहती हैं ताकि उनसे बाहर की ज्ञान - समीर मिलती रहे । आधुनिक शिक्षा में समय के बदलने के समय परिस्थिति, परिवेश के अनुसार परिवर्तन भी आना चाहिए। उनका कहना है आज शिक्षा वस्तु निष्ठ बन कर रह गई है, उसे स्वनिष्ठ बनाया जाए, चरित्रनिष्ठ बनाया जाए । पुस्तकीय ज्ञान से छात्रों का नैतिक विकास नहीं हो सकता । शिक्षा एकांगी न हो, सम्पूर्ण हो । जहां इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, बायोलोजी, बोटेनी, फिजिक्स, राजनीतिशास्त्र आदि की शिक्षा दी जाती है वहां जीवन - विज्ञान की शिक्षा भुला दी जाती है । जीवन-विज्ञान की शिक्षा सिद्धांत तथा प्रयोग दोनों पक्षों के आधार पर दी जानी चाहिए । पीनियल, थायराइड, पिच्युटरी आदि ग्रन्थियां हमारे चरित्र को बनाती बिगाड़ती हैं । पीनियल ग्रन्थि बालकाल में सक्रिय रहकर जीवन को शुद्धपवित्र बनाती है लेकिन व्यक्ति के बड़ा होने के साथ उसका ह्रास होने लगता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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