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युवाचार्य महाप्रज्ञ की शिक्षा-विषयक दृष्टि
मेरा फक्र बेहतर है सिकन्दरी से, यह आदमगरी है, वो आईना साजी ।
-इकबाल आचार्य तुलसी आदमगर हैं, आईनासाज नहीं। उन्होंने पचास हजार से अधिक कि. मी. की पदयात्रा करके जो धर्म की अहिंसा-सत्य-अस्तेयब्रह्मचर्य-अपरिग्रह की जलधारा बहाई वह अनन्तकाल तक बहती रहेगी। उन्होंने अपने ज्ञानदीपक से जो नया दीपक जलाया वह युवाचार्य महाप्रज्ञ हैं । ऐसा लगता है जैसे आचार्य तुलसी दिनेश हैं और युवाचार्य उनसे आलोक प्राप्त करने वाले राकेश हैं । दिनेश है तो राकेश भी होगा ही, जैसे दिन है तो रात भी होगी ही। युवाचार्य और तुलसी का अविनाभाव सम्बन्ध है। मैं समझता हूं यह आचार्यश्री के जीवन की एक महान् उपलब्धि है और तेरापंथ को एक अपूर्व देन है।
हजरत निजामुद्दीन औलिया (१२४३-१३२५) ने एक बार कहा था कि जब खुदा मुझसे यह पूछेगा कि मेरे लिए क्या लाया, तो कहूंगा अमीर खुसरो को लाया हूं। अमीर खुसरो उनके सर्वाधिक प्रिय शिष्य थे, बिना उनसे मिले हजरत को चैन नहीं पड़ता । हजरत ने यहां तक कह दिया था कि यदि खुदा इजाजत देता तो मैं यह चाहता कि मेरी कब्र में अमीर खुसरो को दफन किया जाए, और आज अमीर खुसरो उनकी कब्र में तो दफन नहीं लेकिन उनके चरणों में अवश्य दफन हैं । जैसा सम्बन्ध निजामउद्दीन औलिया और अमीर खुसरो का था वैसा ही सम्बन्ध आचार्य तुलसी और युवाचार्य का है । युवाचार्य के लिये आचार्य तुलसी 'ज्ञानदीपक' हैं, स्नेह-ममतामय गुरु, प्रेरणा का अजस्र स्रोत हैं । इस महान गुरु की महिमा कबीर के इन शब्दों द्वारा व्यंजित की जा सकती है
सतगुरु कि महिमा अनन्त, अनन्त किया उपकार ।
लोचन अनन्त उघाडिया, अनन्त दिखावनहार ।।
निःस्वार्थ तथा निश्छल होने पर ही शिष्य गुरु की कृपा तथा ज्ञानज्योति प्राप्त कर सकता है । सूफी कवि जायसी ने ठीक कहा है
चेला सिद्धि सो पावै, गुरु सौं करै अछेद । गुरु करै जो किरिपा, पावै चेला भेद ।।
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