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अध्यात्म के परिपार्श्व में
दूरी को पाट दिया।" इस प्रकार आचार्यश्री तुलसी एक समन्वयवादी हैं, मानव को मानव से, सम्प्रदाय को सम्प्रदाय से, धर्म को धर्म से जोड़ने वाले हैं । उन्होंने जैन समाज से यह अनुरोध किया कि जहां कहीं हिंसा या आतंक का वातावरण हो वहां वह जायें और सद्भावना का वातावरण बनायें। देश का, आने वाली पीढ़ी का भविष्य अनुशासन का पालन करने में है। उन्होंने लोगों से अनुरोध किया कि वे प्रण करें कि दहेज नहीं लेंगे, विवाह-शादी पर दिखावा-धन-मान-प्रदर्शन नहीं करेंगे, खाद्य सामग्री तथा औषधियों आदि में मिलावट नहीं करेंगे, साम्प्रदायिक भेदभाव तथा अस्पृश्यता को समूल नष्ट कर भावात्मक एकता और राष्ट्रीय अखण्डता को बढ़ावा देंगे।
आचार्यश्री तुलसी ने किरणें ढूंढी तो उन्हें उजालों की कमी नहीं रही। उन्होंने अपनी मान्यताओं को, तेरापंथ के सिद्धान्त को युग के परिवेश में प्रस्तुत किया। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व विविध आयामों के रंगों से अनुरंजित है। अपने प्रगतिशील व्यक्तित्व द्वारा उन्होंने जनमानस को, युग चेतना को नवीन स्फूति, नया आत्मबल और नयी दिशा प्रदान की। वे हमारे सामने एक युगपुरुष के रूप में वंदनीय हैं। लाखों लोग उनके अनुयायी हैं, लाखों लोगों के हृदय में वे घर किये हुए हैं
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर,
लोग साथ होते गये और कारवां बनता गया । वह मनुष्य को मनुष्य से और हृदय को हृदय से मिलाने का काम कर रहे हैं
तू बराए वस्ल करदन आदमी, न बसए फस्ल करदन आदमी ।
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