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इस्लाम की रोशनी में अणुमत आन्दोलन
योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि वायु विकार रहित स्थान पर जलता हुआ दीपक जैसे निश्चल होकर जलता है वैसी ही स्थिति संयत ज्ञानयोगी की होती है ।' एक और स्थान पर वहां श्रीकृष्णजी कहते हैं कि मैं उन योगीजनों के अन्तःकरण में तेजस्वी दीपक जला दिया करता हूं जिससे अज्ञानजनित अन्धकार को प्रकाशमय तत्त्वज्ञान-दोपक के द्वारा नष्ट कर देता हूं।' अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री तुलसीजी भी एक कर्मयोगी के सदृश समाज के अज्ञानांधकार को दूर कर रहे हैं। अणुव्रत का अकंपित दीप जलाकर उन्होंने ५० हजार कि० मी० की पैदल यात्रा कर गांव-गांव, नगरनगर जाकर लोगों को ज्ञानालोक प्रदान किया, उनकी अज्ञानजनित रुढ़ियों को नष्ट किया और एक स्वस्थ समाज की संरचना में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनका यह अणुव्रत आन्दोलन साम्प्रदायातीत है, सम्प्रदाय से ऊपर है, शुद्ध मानव-स्तर पर आरुढ़ है, उसमें साम्प्रदायिक या धार्मिक आग्रह नहीं है । कहने का मतलब यह है कि वह संकीर्ण और परिसीमित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शुरू नहीं किया गया है। उसका उद्देश्य महान है, सर्वहितकारी है, मानवीय धरातल पर है। वह मनुष्य को व्यसन-मुक्त करता है और ऐसे चरित्र का निर्माण करता है जो समाज के बहुमुखी विकास में सहायक होता है, समाज की ऐसी संरचना करता है जो जीवन-मूल्यों का संरक्षण-परिवर्धन करती है । आचार्यश्री तुलसी का यह आन्दोलन मनुष्य को शीलवान बनने का मार्गदर्शाता है, उसके अन्धकार का हरण करता है। अन्धकार दो प्रकार का होता है :
(१) भाव अन्धकार : यानी मिथ्यात्व, अज्ञान (२) द्रव्य अन्धकार : यानी प्रकाश का अभाव
यहां प्रथम प्रकार के अन्धकार से अभिप्रेत है जो मनुष्य मिथ्यात्व १. यथा दीपो निवातस्थो नेडग सोपमा स्मृता । योगिनो यतचित्तस्य युजंतो योगमात्मः ॥
-गीता (६,१९) २. तेषामेवानुकंपार्थमहपज्ञानजं तमः । नाशयाम्यात्मभावरस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ॥
-गीता (१०,११)
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