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आचार्य तुलसी की धर्मशासना : आधुनिक संदर्भ में
राधाकृष्णन की अंग्रेजी पुस्तक · Living with Purpose' में भी मिलती है जहां उन्होंने गुरु नानक, दयानन्द सरस्वती, तिलक, गोखले, राजा राममोहन राय, पटेल, आजाद, मोतीलाल नेहरू आदि के साथ आचार्यजी की चर्चा भी की है और कहा है कि उन्होंने अपना जीवन दलित और पिछड़े लोगों के सुधार में, उनके आचार-व्यवहार की शुद्धि में समर्पित किया है। अनैतिकता तथा सामाजिक कुरीतियों से जूझने का उन्होंने संकल्प लिया है। उन्होंने हमारे विद्वानों, शिक्षा-शास्त्रियों, राजनीतिज्ञों सभी को प्रभावित किया है। राजगोपालाचार्य, राजेन्द्र बाबू, पंडित जवाहरलाल नेहरू, पुरुषोत्तमदास टंडन, इन्दिरा गांधी, काका कालेलकर, विनोबा भावे, मुरारजी देसाई, जयप्रकाश नारायण, जाकिर हुसैन आदि उनके सम्पर्क से प्रभावित हुए। १९६२ में गंगाशहर (राज.) में एक भव्य समारोह में डा० राधाकृष्णन् ने उन्हें एक अभिनन्दन-ग्रन्थ भेंट किया था। आचार्यश्री १९७१ में "युगप्रधान आचार्य" के रूप में सम्मानित हुए। वह १९३६ से आचार्य पद का विधिवत् उत्तरदायित्व वहन करते आ रहे हैं।
वि० संवत् १९७१ को लाडनूं में जन्मे बालक तुलसी अल्पायु में ही तेरापंथ के आठवें आचार्यश्री कालगणीजी द्वारा दीक्षित हुए और ११ वर्षों तक मेधावी छात्र के रूप में अध्ययन-मनन कर गुरु कालूगणीजी द्वारा २२ वर्ष की उभरती जवानी में आचार्य पद को प्राप्त हुए। कहते हैं उन्होंने अपने ग्यारह वर्षीय मुनि साधना के समय २० हजार पद्य कण्ठस्थ कर लिये थे । उन्हें श्री कालूगणी ने अपनी मृत्यु से पूर्व ही अपना उत्तराधिकारी मनोनीत कर दिया था। इसी प्रकार आचार्य तुलसी ने अपने जीवन काल में ही अपने योग्यतम शिष्य श्री नथमलजी को अपना उत्तराधिकारी फरवरी, १९७९ में मनोनीत किया। मुनिश्री नथमलजी को आचार्यश्री तुलसी ने “महाप्रज्ञ" की उपाधि १९७८ में प्रदान की। यह आचार्यजी की महानता, उदारता के साथ उनके गुणों की परख का अनुपम कौशल है। आचार्य श्री तुलसी को पूर्णतः समर्पित हैं श्री युवाचार्यजी । उन्हीं की विद्वत्ता तथा पाडिण्त्य के द्वारा आचार्यजी जैनागमों का सम्पादन-कार्य कराकर एक अविस्मरणीय तथा चिरवंद्य सेवा कर रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे आचार्यश्री तुलसी सूर्य हैं और "युवाचार्य महाप्रज्ञ" उनकी किरणें; आचार्यश्री तुलसी कमल हैं और युवाचार्य महाप्रज्ञ उसका सौरभ, आचार्यश्री तुलसी चिनार हैं और उसकी शीतल छाया युवाचार्य महाप्रज्ञ। दोनों का अविनाभाव सम्बन्ध है, यह तेरापंथ संघ की गंगा-जमना हैं । वस्तुतः युवाचार्य के निर्माण में उनका अपना ही समर्पण भाव प्रमुख है, ऐसा आचार्यजी मानते हैं ।
___ आचार्यश्री तुलसी ने १९४९ में 'अणुव्रत आन्दोलन को प्रारम्भ किया । उसे व्यावहारिक दृष्टि प्रदान करने में युवाचार्य का भी हाथ रहा ।
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