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________________ १७० अध्यात्म के परिपार्श्व में शान्ति और सौम्यता को देखकर ही ऐसी प्रतीति होगी कि सचमुच संत- मिलन हुआ है ।" हमारे समाज में अनेक कुरीतियां हैं जो कुरोग बन गई हैं । उनको समूल उच्छेदित करने में भी श्री तुलसी पूर्णत: सक्रिय हैं। अस्पृश्यता तो हमारे समाज में एक अभिशाप बना है । उन्होंने इस दिशा में रचनात्मक कार्य किये, केवल जुबानी जमा-खर्च नहीं किया। उनके संघ के साधुसाध्वियां अछूतों की बस्तियों में गये, शिविरों का आयोजन किया और उन्होंने इस दिशा में दो कार्य किये (१) उच्चवर्ग से अहम् भाव नष्ट करना ( २ ) अस्पृश्य जाति, दलित लोगों के मन से होनता का भाव मिटाना । उन्होंने अपने "अमृत महोत्सव" के अवसर पर अमृत कलश यात्रा के पांच संकल्पों में अस्पृश्यता निवारण को भी शामिल किया था । उन्होंने सही फरमाया"मेरे अभिमत से जातीयता का गर्व जितना बुरा है, हीन भावना भी उससे कम बुरी नहीं है । अपने आपको हीन, दीन और अस्तित्वहीन मानने वाले अनचाहे ही जातीयता की भावना को प्रोत्साहन देते हैं । ऐसे लोगों को विश्वास में लेकर समझाने से ही उन्हें अपने अस्तित्व का बोध हो सकेगा ।" अस्पृश्यता के निवारण में योग देकर आचार्यश्री ने महावीर के मिशन को साकारित किया है । महावीर जातिवाद के विरुद्ध थे, उन्होंने जाति से तप को श्रेष्ठ माना "सक्ख खु दीसई तवो विसेसो, न दीसई जाइविसेस कोई । " - विशेषकर जहां तक परिग्रह तथा अन्य व्यसनों की बात है आचार्यश्री तुलसी की दृष्टि उन पर भी रहती है । उन्होंने देखा कि हमारा समाजयुवा वर्ग मादक द्रव्यों के सेवन में प्रवृत्त होता जा रहा है, इसलिए इस दुर्व्यसन की रोकथाम आवश्यक है। इससे छुटकारा पाने के लिए उन्होंने कानून के साथ-साथ हृदय परिवर्तन की भी बात कही है । वास्तव में कानून का पालन तो मनुष्य भय के कारण अस्थायी रूप में ही कर पाता है, मगर हृदय परिवर्तन के द्वारा तो मनुष्य के आचार-विचार में स्थायी परिवर्तन हो जाता है । आजकल हीरोइन, हशीश, मद्यपान आदि का शिकार है हमारा युवा समाज, निम्न जातियां । मादक द्रव्यों से मनुष्य को विवेक-वृत्ति नष्ट हो जाती है, उसमें अपराध-चेतना का उदय होता है और फिर वही अपराध, हिंसा, आतंक लूटमार का रास्ता उसके सामने रह जाता है । उनके विचार में हमें महावीर तथा गांधी द्वारा निर्दिष्ट साधन-शुद्धि के मार्ग को अपना कर, उसे कार्यान्वित कर, ध्यान और अनुप्रेक्षा द्वारा ऐसी बुराइयों, रोगों की रोकथाम की जा सकती है । आचार्यश्री तुलसी के बहुआयामी व्यक्तित्व की एक झांकी हमें डा० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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