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आचार्य तुलसी की धर्मशासना : आधुनिक संदर्भ में
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धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर जो हिंसा, रक्तपात, उपद्रव, अग्निकाण्ड नरकाण्ड होते हैं वे मानवता के लिए शर्मनाक हैं। हमें संकीर्णता से ऊपर उठना चाहिए; वह संकीर्णता चाहे धर्म की हो, जाति या सम्प्रदाय की हो या भाषा अथवा प्रान्तीय हो । आचार्य तुलसी के मतानुसार सम्प्रदाय नहीं, साम्प्रदायिकता बुरी होती है। सम्प्रदाय एक गतिशील परम्परा है, उसका रूढ़ होना साम्प्रदायिकता है। यही साम्प्रदायिकता वैमनस्य और संघर्ष का रूप लेकर महान् अनिष्ट करती है। वह नहीं चाहते कि धर्म के नाम पर घृणा या हिंसा फैले । वह चाहते हैं कि मनुष्य में "सर्वधर्मसद्भाव" की भावना उत्पन्न हो । उन्होंने “सर्वधर्मसद्भाव' को समझाते हुए कहा कि "मेरे अभिमत से सर्वधर्मसद्भाव का अर्थ इतना ही है कि अपने द्वारा स्वीकृत सही सिद्धान्तों के प्रति दृढ़ विश्वास और दूसरे के विचारों के प्रति सहिष्णुता । किसी व्यक्ति या सम्प्रदाय के सिद्धान्तों पर आक्षेप करना, किसी के प्रति घृणा व तिरस्कार के भाव फैलाना, किसी के साथ अवांछनीय व्यवहार करना, सद्भावना में बाधाएं हैं। वैचारिक सहिष्णुता के विकास
और धर्म के मौलिक सिद्धान्तों को लोक जीवन में उतारने का सामूहिक प्रयत्न-ये दो बातें ऐसी हैं, जो धार्मिक सद्भावना की निष्पत्ति हो सकती. हैं।" आचार्यश्री यहां अनेकान्त दृष्टि की ज्योति विकीर्ण करते हैं। महावीर का अनेकान्तवाद ही आज विश्व को वैचारिक संघर्षों से दूर रख सकता है । यह जो “स्टार वार' की बात बड़ी गर्म है, उसे ठण्डा किया जा सकता हैइसी वैचारिक दृष्टि से यानि अनेकान्तवाद से । यही सह-अस्तित्व है, अहिंसाभाव है, यही सर्वधर्मों के प्रति सहिष्णु बनना है । एक देश के दूसरे देश से जो भी मतभेद हैं वे सब अनेकान्त-दृष्टि से दूर किये जा सकते हैं । यदि हम वैचारिक सहिष्णुता से काम लें,. सर्वधर्म सद्भाव को अपनाएं तो मानवता को सुख-शांतिमय वातावरण प्रदान कर सकते हैं और तृतीय महायुद्ध की विभीषिका से बचा सकते हैं ।
आचार्यश्री तुलसी की दृष्टि बहुमुखी है, उनका व्यक्तित्व बहुआयामी है। वे धर्म के साथ देश और समाज पर गहरी दृष्टि रखते हैं। जब देश हिंसात्मक घटनाओं से दो-चार था तो उन्होंने एक कुशल तथा व्यापक दृष्टिसम्पन्न महान् लोकनायक के रूप में पंजाब की समस्या का अहिंसात्मक समाधान खोजने में स्व० संत लोंगोवाल को प्रेरित किया, उन्हें सहयोग दिया। लगभग दो घण्टों तक उनसे बातचीत की और अन्त में आचार्यजी ने कहा-आपकी बात से ज्ञात हुआ कि आप देश की अखण्डता चाहते हैं। आतंकवाद और अलगाववाद की मांग आपकी नहीं है । आपसे मिलकर बहुत प्रसन्नता हुई । हमारी पौने दो घण्टे की बात में एक क्षण के लिए भी आपके चेहरे या वाणी में आक्रोश और उत्तेजना की झलक नहीं मिली।
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