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________________ १६४ अध्यात्म के परिपार्श्व में आचार्यश्री ने "टुथस्टिक" दिखलाते हुए कहा कि वह राजस्थान की कीकर का कांटा है। इसे देखने पर फिर गांधीजी की याद आई जो लघु हस्तशिल्प कला को बढ़ावा देने के पक्षधर थे और छोटी से छोटी वस्तु को उपयोग में लाते थे । आचार्यश्री ने जब मुझे पास बुलाकर अपनी धवल चादर दिखलाई, जो उनके शरीर पर परिवेष्टित थी, तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। वह शुद्ध बारीक खादी और उसके दो पटों को हाथ से ऐसे कौशल से सिया गया था मानो वह मशीन की सिलाई हो। इसके पश्चात् उन्होंने मेरे अध्ययन-शोध के विषय में पूछताछ की। उन्होंने मुझसे इस बात की शिकायत की कि मैं अक्तूबर ८७ में आयोजित सेमिनार में शरीक न हो सका, जिसके लिए मैंने आचार्यश्री से समयाभाव के कारण क्षमायाचना की। आचार्यश्री ने मुझे निर्देश दिया कि आप २.३० बजे आकर आगम-चर्चा देखें। उनसे आज्ञा लेकर मैं युवाचार्यजी से मिलने गया । एक युवा मुनि मेरे साथ थे। युवाचार्य को मैंने चौकी पर विराजमान देखा और वे एक मुनि को नोट्स लिखा रहे थे। ज्ञान-तारल्य में डूबी आंखें, लम्बा छरहरा शरीर, खादी के श्वेत वस्त्र में परिवेष्टित, बीसवीं शताब्दी के जैन दर्शन के मूर्धन्य विद्वान, जैनागमों के कुशल, सिद्धहस्त सम्पादक, धर्म विज्ञान अध्यात्म की त्रिवेणी अपनी रचनाओं द्वारा प्रवाहित करने वाले, प्रेक्षाध्यान के प्रयोगधर्मी मनीषो तेरापंथ के जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं। तेरापंथ के गौरव आचार्यश्री तुलसी के वे गौरवान्वित उत्तराधिकारी हैं। इस मेधावी शिष्य पर, योग्य उत्तराधिकारी पर आचार्य जी कितना गर्व करते होंगे, कितना विश्वास करते होंगे, यह कोई उनके दिल से पूछे । एक सौ से अधिक मौलिक ग्रन्थों के रचयिता सचमुच "महाप्रज्ञ" हैं -- महान् प्रज्ञाशील हैं। उन पर साहित्य जगत् मान कर सकता है। उनकी रचनाधर्मिता को गहनता से परखने की, उसे विश्लेषित करने की आवश्यकता है । मैंने उनसे अपने शोध-विषय की चर्चा की, भारतीय धर्म दर्शन व ध्यान के विषय में जानना चाहा। उनके ज्ञानसागर में अभी अनेक अनछुए मोती छिपे हैं। ___आचार्यश्री और युवाचार्य से मिलने के उपरान्त मैं श्री ललित गर्ग से मिला जो "अणुव्रत भवन" में कार्यालय सचिव के रूप में कार्य करते हैं । उनसे कुछ पुस्तकें भी देखने को मिलीं और वे मुझे बाद में प्राप्त भी हो गईं। कुछ अभी आनी शेष हैं । २.३० बजे मैं जैनागम विचार-विमर्श की बैठक में सम्मिलित हुआ। आचार्यश्री बड़ी सी चौकी पर विराजमान थे, युवाचार्य और अन्य साधु-साध्वियां अपने-अपने आसन पर, कलम-कागज सहित उपस्थित थे। युवाचार्य आगम के सम्पादन-कार्य में लीन हैं । दिशा निर्देशन मिल रहा है आचार्यश्री से । एक-एक शब्द पर चर्चा होती है, व्याख्या नोट की जाती है । शब्दार्थ पर, मूलोत्पत्ति पर विचार किया जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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