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एक ज्योतिर्मय युगद्रष्टा
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का सरचश्मा मानते हैं । नैतिकताविहीन धर्म को वह ग्राह्य नहीं मानते । यही उस क्रांति के सूत्रधार हैं जिसने हरिजनों को भी व्रत दीक्षा देने का संकल्प लिया। लोगों ने उनके इस निर्णय का विरोध भी किया, लेकिन उन्होंने स्पष्ट कहा कि यदि कोई हरिजन व्रत दीक्षा लेने को तैयार है, योग्य है, तो वे उसे व्रत दीक्षा देने को तैयार हैं। यही नहीं बल्कि यह भी कह डाला कि यदि उनके यहां (हरिजनों ) शुद्ध भोजन मिलेगा तो वे उसे ग्रहण करेंगे | कितना आधुनिक और प्रगतिशील दृष्टिकोण है । यहां उन्हें हम गांधीजी की विचारधारा का संवाहक कह सकते हैं। आचार्यजी ने पहले मेरी कुशलता पूछी, इसके बाद उन्होंने परमविदुषी साध्वी कनकप्रभाजी से मेरा परिचय कराया । वह आचार्यश्री से उस समय डिक्टेशन या नोट्स आदि ले रही थी । यह वह सरस्वती की वरदपुत्री है जिन्होंने अपनी कुशल लेखनी से आचार्यश्री के यात्रा साहित्य का अत्यन्त सजीव, मोहक, चित्ताकर्षक शैली में चित्रण किया है। एक-एक प्रसंग, एक-एक चित्र भावुकता के रंग में डूबा है । कहीं-कहीं दार्शनिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ किसी स्थान आदि का वर्णन अपने में अनूठा है, ज्ञानवर्धक है । उनके द्वारा सम्पादित पुस्तकें"जब महक उठी मरुधर की माटी", " बहता पानी निरमला" आदि को पढ़ते हुए पाठक को ऐसा भान होता है जैसे वह माचार्यश्री के साथ-साथ पद यात्रा कर रहा है । साध्वी कनकप्रभाजी की पकड़ भूगोल, इतिहास, दर्शन, लोक-संस्कृति पर गहरी है । साध्वीजी ने मुझे वह पुस्तक दिखाई जो आचार्यश्री की दक्षिण भारत की यात्रा पर आधारित है । जी में आया था कि उस पुस्तक को उनसे मांग लूं, मगर संकोच के कारण कह नहीं सका । आचार्यश्री ने अपने साधु-साध्वियों द्वारा हस्त शिल्पकला की नयनाभिराम तथा रोजाना के इस्तेमाल की चीजें भी बनवाई हैं । इन्हें देख कर हरेक को विस्मय होगा ।
आचार्यश्री के खाने-पीने के बर्तन यही हैं । उन्हें साफ भी सरलता से कपड़े से किया जा सकता है । इन बर्तनों पर आगम की गाथाएं, सूत्र इस बारीकी से चित्रित हैं कि देखते ही बनता है । यह बर्तन बहुधा सूखे फलों को साफ करके बनाए गए हैं। मुझे उन बर्तनों को देख कर कश्मीर की "पेपरमाशी" का भ्रम हुआ । करोड़ों रुपये की पेपरमाशी की अतिसुन्दर नक्शीन वस्तुएं प्रति वर्ष निर्यात की जाती हैं और इनके द्वारा लाखों व्यक्तियों को रोजी-रोटी मिलती है । "सफरंग मोसिस ", "एशिया क्राफ्ट" आदि इस दिशा में लीडिंग व्यापारी हैं । विदेशी पर्यटक "बण्ड" पर स्थित इन दुकानों पर शोपिंग करते मिलेंगे । पेपरमाशी की कला कश्मीर के अति लोकप्रिय महान शासक जैनुल - आबिदीन (१४२० - १४७० ) द्वारा ईरान मध्य एशिया से कारीगर बुलाकर यहां विकसित की गई ।
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