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________________ एक ज्योतिर्मय युगद्रष्टा धवलकेश, गौर वर्ण, सत्य तेज से प्रदीप्त विशाल नेत्र, भव्य प्रशस्त मस्तक, प्रसन्न स्मितवदन, आत्मीयता के सागर, समभाव के साधक, सहजता की मूर्ति, युगा के तत्ववेत्ता, मानवता के मसीहा, राष्ट्रीय चेतना के प्रहरी, अणुव्रत के प्रवर्तक, मृदुभाषी, अनुशासन में डूबा व्यक्तित्व, अध्यात्मज्योतियह है प्रथम-दर्शन में आचार्यश्री तुलसी का आकर्षक, भव्य व्यक्तित्व। बात दिसम्बर, ८७ के प्रथम सप्ताह की है। भिलाई में जैन-परिषद के एक अधिवेशन से लौट कर आ रहा था। दिल्ली रुका आचार्यश्री तुलसी के दर्शन करने । २१० दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली पर स्थित 'अणुव्रत भवन", वहां विशाल बिल्डिंग बनी है। आधुनिक टेक्नोलोजी द्वारा लिफ्ट है । सभी प्रकार की सुविधाएं हैं। मैंने उन्हें कोई पूर्व सूचना नहीं दी थी। पहले कभी उनके दर्शन भी नहीं किए थे। दर्शन लाभ प्राप्त करने की इच्छा बहुत दिनों से हृदय में संजोए था। उन्होंने देश की ज्वलन्त समस्या--पंजाब की समस्या को सुलझाने में सन्त लोंगोवाल से बातचीत की और उन्हें सरकार से बातचीत करने को तैयार किया। इससे ज्ञात हुआ कि आचार्यश्री तुलसी राष्ट्रीय चेतना के एक महान प्रहरी हैं, जो सदा सजग-सचेत रहते हैं। दूसरी बात उनके व्यक्तित्व की यह है कि वे जैन धर्म के एक प्रमुख आचार्य हैं परन्तु वे जैन सम्प्रदाय की तंग विचारधारा को पसन्द नहीं करते । उनका हृदय विशाल है, उदार है, दृष्टिकोण प्रगतिशील है। वे धर्मसम्प्रदाय की जीर्ण रूढ़ियों में बंधे रहने वाले नहीं हैं। ऐसी रूढ़ियों को विच्छिन्न करने वाले हैं। वे पहले अपने आपको मनुष्य मानते हैं, फिर जैन धर्म के आचार्य हैं। मैंने एक व्यक्ति–साधु जी से निवेदन किया- "मैं आचार्यजी से मिलना चाहता हूं। मेरा नाम निजामुद्दीन है, मैं श्रीनगर से-कश्मीर से आया हूं।" थोड़ी ही देर में वे साधुजी लोटकर आए तथा मुझे अपने साथ यह कह कर ले चले कि आचार्य जी याद कर रहे हैं। मैं एक विशाल कक्ष में पहुंचा और अकस्मात् आचार्यजी पर मेरी नजर पड़ी। मैंने उन्हें सश्रद्धा अभिवादन किया, उन्होंने बड़ी स्नेहसिक्त दृष्टि से उसे स्वीकार किया। कुछ क्षण मैं उन्हें देखकर विस्मयीभूत हो गया-यही वह विराट व्यक्तित्व है जिसने भारत का चप्पा-चप्पा पैदल नाप कर जनमानस को धर्म भावना से बांदोलित किया है। यही वह अणुव्रत अनुशास्ता है जो धर्म को नैतिकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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