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अध्यात्मवादी संत की सामाजिक चेतना
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और समाज को नैतिकतापूर्ण जीवन जीने की कला सिखाने के लिए पदयात्रा करते हैं और जाहिर है इन यात्राओं के बीच वे राष्ट्र की समस्याओं को भी देखते-समझते हैं और उनका समीचीन समाधान भी प्रस्तुत करते हैं। एक बार व्यापारी वर्ग से उन्होंने कहा-"आपकी कथनी और करनी में जो दूरी है वह मिटनी चाहिए।" नैतिकता और चरित्र में विश्वास रखना है तो उसकी पहल खुद से करें। पहले अपने दोष दूर करें तब दूसरों के भी कर सकते हैं । आचार्यश्री ऐसा भारत देखना चाहते हैं जहां गरीबी-अमीरी का भेदभाव न हो, धार्मिक दंगे न हों, कोई अस्पृश्य न हो, शोषण न हो, मिलावट का धंधा न हो, दहेज की कुरीति न हो, मादक पदार्थ का सेवन न हो । क्या हम ऐसा भारत नहीं बनाना चाहेंगे ? क्या यह राम-राज्य नहीं होगा !
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