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________________ महावीर की चेतना-ज्योति भारतवर्ष काफी समय तक अंग्रेजों के शासन में रहा। उन्होंने 'डिवाइड एण्ड रूल' की पालिसी पर अमल करते हुए, हिन्दू-मुसलमानों की साम्प्रदायिक भावना को भड़काते हुए काफी दंगे-फसाद, खून-खराबा कराया। परन्तु आज हम आजाद हैं, देश आजाद है, हमारी अपनी सरकार है, हमारा अपना शासन है फिर आये दिन साम्प्रदायिक दंगे क्यों होते हैं ? क्यों रक्तपात होता है ? क्यों एक वर्ग या सम्प्रदाय के लोग एक दूसरे वर्ग या सम्प्रदाय के लोगों के साथ अमानुषिक व्यवहार करते हैं, एक दूसरे का नरसंहार करते हैं ? हमारे देश में कभी मुरादाबाद, कभी अलीगढ़, कभी मेरठ, कभी कहीं और कभी कहीं हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठते हैं । अब भी क्या अंग्रेज लड़ाने आते हैं ? हरिजनों के घरों में आग हम भारतवासी ही तो लगाते हैं ? सिख सम्प्रदाय या अन्य कोई सम्प्रदाय जब आपस में लड़ते हैं तो हम खुद कमजोर होते हैं। साम्प्रदायिक दंगों को रोकने के लिए सरकार ने 'राष्ट्रीय एकता समिति' का गठन किया था, वैसे भी इस समिति को कई बार नया रूप दिया मगर जब दंगे होते हैं तो इस समिति का नाम कम ही सुनने में आता है। सरकार समितियों द्वारा, शक्ति प्रयोग के द्वारा दंगों पर काबू पाने की कोशिश करती है मगर जब तक जनता में, जनसाधारण में नई चेतना-ज्योति नहीं जलाई जायेगी तो साम्प्रदायिक दंगों का, आर्थिक पिछड़ेपन का, वर्ग-संघर्ष का, धार्मिक-साम्प्रदायिक मतभेदों का बढ़ता अन्धकार दूर नहीं किया जा सकता। इस बढ़ते अन्धकार को दूर करने के लिये उस अकंप लौ को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा जो ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान महावीर ने प्रज्वलित की थी, जन-मानस को आलोकित किया था। भगवान महावीर जैन धर्म के अन्तिम और २४ वें तीर्थङ्कर माने जाते हैं । 'तीर्थङ्कर' का शाब्दिक अर्थ है 'मोक्षमार्ग का प्रवर्तक युग पुरुष'। 'तीर्थङ्कर' एक व्यंजनात्मक शब्द है, यह आत्मविकास का, व्यक्तित्व के विकास का चरम शिखर है, आत्मा काश में उड़ान भरना, आत्मान्वेषण करना 'तीर्थङ्कर' है । "रत्नत्रय-सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यक्चारित्र से परिसम्पन्न जीव ही उत्तमतीर्थ है क्योंकि वह रत्नत्रयी रूपी नौका द्वारा संसार सागर से पार करता है।' (समण सुत्तम ५१४) तीर्थङ्कर सर्वहित के संकल्प को लेकर साधना मार्ग पर चलता है, आध्यात्मिक विकास की चरमसीमा पर पहुंचकर लोकहित में सरत हो जाता है । वह आत्म विकास या आध्यात्मिक विकास को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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